डीएनए हिंदी: आज पीएम मोदी (PM Narendra Mod) ने एक बार फिर किसी का नाम लिए देश की पुरानी शिक्षण व्यवस्था पर बड़ा हमला बोला. उन्होंने कहा है कि छात्रों के सिलेबस में ऐसी चीजें होती थीं जिसे पढ़कर उनमें अपने इतिहास के प्रति हीन भावना रहती थी. पीएम ने दावा किया कि स्कूलों से लेकर कॉलेजों तक में एक खास तरह का इतिहास पढ़ाया जाता था जो कि एजेंडा या नरेटिव से संबंधित था. हालांकि उन्होंने यह भी कि अनेकों के बावजूद हमने अपने इतिहास को काफी हद तक संजो कर रखने में सफलता पाई है.
गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों वीर साहिबजादे फतेह सिंह और जोरावर सिंह के बलिदान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें किया. वे दिल्ली के ध्यानचंद स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में भी शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने कहा, "चमकौर और सरहिंद के युद्ध में जो कुछ हुआ, वह ना भूतो ना भविष्यति था. यह युद्ध हजारों साल पुराना नहीं है कि उसकी यादें धुंधली हो गई हों. यह इस देश में तीन सदी पहले ही हुआ था."
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बहादुरी का किया उल्लेख
पीएम मोदी ने चमकौर युद्ध को याद करते हुए गुरु तेग बहादुर के पुत्रों की प्रशंशा की. उन्होंने कहा, "एक तरफ कट्टर मुगल सल्तनत थी तो वहीं ज्ञान और तपस्या में तपे हुए हमारे गुरु थे. एक तरफ आतंक की पराकाष्ठा थी तो दूसरी तरफ अध्यात्म का शीर्ष. एक तरफ लाखों की फौज थी तो दूसरी तरफ अकेले ही निडर खड़े वीर साहिबजादे थे."
इतिहास और भारत के भविष्य को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अगर हमें भारत को भविष्य में सफलता के शिखरों तक ले जाना है तो हमें अतीत के संकुचित नजरियों से भी आजाद होना पड़ेगा. पीएम मोदी ने कहा, "जोरावर सिंह साहब और फतेह सिंह साहब को जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया.एक तरफ नृशंसता ने अपने सारे कीर्तिमान तोड़ दिए तो वहीं धैर्य ने भी अपनी पराकाष्ठा दिखाई। जिस देश की विरासत ऐसी हो, उसमें स्वाभाविक रूप से स्वाभिमान और आत्मविश्वास कूट-कूटकर भरा होना चाहिए."
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सिख गुरु परंपरा का बताया
पीएम मोदी ने इस कार्यक्रम के दौरान कहा कि आजादी के अमृतकाल में देश ने गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प फूंका है. वीर बाल दिवस हमारे पंच प्रणों के लिए प्राण वायु की तरह है, जिस समाज में नई पीढ़ी जोर जुल्म के आगे घुटने टेक देती है, उसका भविष्य समाप्त हो जाता है. सिख परंपरा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सिख गुरु परंपरा सिर्फ आस्था और अध्यात्म की ही परंपरा नहीं है. यह एक भारत और श्रेष्ठ भारत के लिए भी प्रेरणा पुंज है। गुरु ग्रंथ साहिब इसका प्रमाण है. इसमें 14 रचनाकारों और 15 संतों के वचन शामिल हैं.
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