डीएनए हिंदी: राजस्थान में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान होते ही राजनीतिक चुनावी माहौल और गरमा गया है. राजस्थान में पिछले 30 सालों से एक चीज जो सबसे दिलचस्प होती आ रही है वह यह है कि यहां हर विधानसभा चुनाव में राज बदलता है. यानी एक बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेस चुनाव जीतती आई है लेकिन इस बार कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लोक लुभावने वादे करके और फ्री के घोषणाओं के साथ इस रिवाज को बदलने की ठानी है. राहुल गांधी ने भी इस बार जीत का दावा किया है. राजस्थान में आखिरी बार साल 1990 और 1993 में दो बार लगातार भैरो सिंह शेखावत के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी थी. उसके बाद से बीजेपी और कांग्रेस दोनों अपनी सरकार को दोबारा बनाने में सफल नहीं हुई हैं.
एक तरफ बीजेपी जहां इस रिवाज को कायम रखने के लिए चुनावी मैदान पर मजबूती दिखा रही है और इसके लिए बीजेपी ने कई सांसदों को भी चुनाव मैदान में उतारा है. वहीं, दूसरी तरफ सीएम अशोक गहलोत अपने राज को कायम रखने के लिए हर सियासी पैंतरा आजमा रहे हैं. उन्होंने राजस्थान की जनता के लिए योजनाओं का पिटारा खोला हुआ है. साथ ही, राज्य में ज़िलों की संख्या को बढ़ाकर 53 करना भी अशोक गहलोत अपना मास्टर स्ट्रोक मानते हैं.
गहलोत-पायलट के रिश्ते होंगे अहम
बीजेपी जो आमतौर पर एक अनुशासित पार्टी मानी जाती है वह इस बार आपस में जूझती हुई दिखाई दे रही है. वहीं, कांग्रेस पार्टी में गुटबाज़ी को चुनाव आते आते रोक लिया गया दिख रहा है. लंबे समय से गहलोत-पायलट में चल रही कड़वाहट अब नरमी में तब्दील होती नजर आई है. ये कांग्रेस के लिए राहत की खबर है लेकिन अगर फिर से दोनों गुटों में मतभेद होते हैं तो इसका खामियाजा कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है क्योंकि सचिन पायलट का कई विधानसभा सीटों ख़ासतौर पर गुर्जर मतदाताओं पर अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है.
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फिलहाल, दोनों 30 सालों से चली आ रही परपंरा तोड़ने में जुटे हैं लेकिन उसकी जीत की राह में कई चुनौतियां हैं. उधर बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को किनारे करने का जोखिम भी ले लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में साफ किया है कि विधानसभा चुनाव में सिर्फ़ एक ही चेहरा है और वो है कमल. बीजेपी में वसुंधरा की उपेक्षा को संघ की रणनीति का भी हिस्सा माना जा रहा है. जिसकी बदौलत देश और प्रदेश में सियासत का मौसम बदलने की कोशिश की जा रही है.
वसुंधरा राजे होंगी दरकिनार?
एक तरफ जहां राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा राजे को दरकिनार किया जा रहा है. वहीं, पार्टी इसकी भरपाई दीया कुमारी को विकल्प के तौर पर सामने लाकर करना चाह रही है. यही वजह है कि पिछले महीने जब पीएम मोदी की जयपुर में रैली थी तब कार्यक्रम में दीया कुमारी को मंच संचालन का काम सौंपा गया था जबकि आम तौर पर मंच संचालन की जिम्मेदारी पार्टी के वरिष्ठ और भरोसेमंद नेताओं को दी जाती है. वसुंधरा राजे और दीया कुमारी दोनों ही राजस्थान के शाही परिवारों से हैं.
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इसके अलावा राजस्थान के चुनाव में बड़ा असर हनुमान बेनीवाल भी डाल सकते हैं. जाट मतदाताओं पर उनका बहुत प्रभाव माना जा रहा है. जाट वोटरों को लुभाने के लिए अजय चौटाला के नेतृत्व में जननायक जनता पार्टी भी चुनाव मैदान में है. साथ ही, एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने राजस्थान विधानसभा चुनाव में उतरने का एलान कर रखा है. अलवर में ओवैसी ने कहा था कि वो राजस्थान की 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने वाले हैं. राजस्थान के अलवर, भरतपुर, सवाई माधोपुर और टोंक में मुस्लिम आबादी खासा असर रखती है.
नोट: यह लेख रवींद्र सिंह श्योराण ने लिखा है. वह राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार है. लेख में व्यक्त बातें उनका निजी विचार हैं.