डीएनए हिंदी: मशहूर शायर फ़ारिग़ बुख़ारी ने लिखा है, देख, यूं वक़्त की दहलीज़ से टकरा के ना गिर.रास्ते बंद नहीं, सोचने वालों के लिए. इन लाइनों का सही मायने में अर्थ समझाया है, उदयपुर के पीपलीखेत गांव के आदिवासियों ने. राजस्थान के उदयपुर का आदिवासी बाहुल्य इलाका खूणा ग्राम पंचायत का पीपलीखेत गांव है. जिला मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 150 किलोमीटर है. साल 2002 में सरकार ने यहां एक प्राइमरी स्कूल की शुरुआत की थी. कई बार बच्चे आते तो कभी-कभी 4 से 5 बच्चे ही स्कूल आते थे. स्कूल में सुविधाएं भी ना के बराबर थीं. इस स्कूल के शिक्षक और बच्चों ने एक ऐसी मिसाल कायम की है जिसे संकल्प से सिद्धि की मिसाल कह सकते हैं. DNA TV Show में इस पॉजिटिव न्यूज को शामिल किया गया है तो आइए जानते हैं इसके बारे में सब कुछ.
स्कूल तक पहुंचने के लिए पार करनी पड़ती थी नदी
सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर शिक्षा मित्र के तौर पर एक टीचर की नियुक्ति की थी. जून 2022 में पहली बार यहां ग्रेड थर्ड टीचर समरथ मीणा की पोस्टिंग की गई थी. यह उनकी भी पहली पोस्टिंग थी. उन्हें नहीं पता था कि पीपलीखेत गांव में जाने से पहले उन्हें सेई नदी पार करनी पड़ेगी.जब सेई नदी तक पहुंचे तो वहां घुटने तक पानी था. इसके बाद जब वो गांव में पहुंचे, तो पता चला कि स्कूल तक जाने के लिए भी 6 किलोमीटर का कच्चा और ऊबड़-खाबड़ रास्ता तय करना पड़ता है. समरथ मीणा ने जैसे-तैसे एक साल यहां गुजारा. इस दौरान उन्होंने तय किया कि अब यहां से किसी तरह से ट्रांसफर लेना है.
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जब पीपलीखेत गांव के लोगों को पता चला कि रास्ते की परेशानी की वजह से समरथ यहां से अपना ट्रांसफर करवा रहे हैं तो ग्रामीणों ने उनसे रुकने की गुजारिश की. इसके बाद 24 जून 2023 को ग्रामीणों ने एक बैठक बुलाई. इसमें समरथ भी थे और यहां ग्रामीणों ने सभी के सामने वादा किया कि वे गांव में खुद अब रास्ता बनाएंगे. रास्ता तेजी से पूरा करेंगे और 15 अगस्त को बच्चों के टीचर जी बाइक पर स्कूल आएंगे.बच्चों और उनके शिक्षक से किए वादे को पूरा करने के लिए अगले ही दिन गांव के लोग जुट गए.
ग्रामीणों ने पूरा किया वादा
35 लोगों की टीम बनाई गई और सभी को अलग-अलग काम सौंपे गए थे. सबसे पहले गांव से स्कूल की तरफ जाने वाले रास्ते से, बड़े-बड़े पत्थरों और मिट्टी के ढेर को हटाया गया. ग्रामीण अपने घर से ही फावड़ा, गैंती, हथौड़ा लेकर हर सुबह निकलते और 8 घंटे तक काम करते थे. रास्ते से बड़े पत्थरों को हटाने के बाद ऊबड़-खाबड़ रास्ते को समतल करने का काम शुरू किया गया. यह सिलसिला करीब 50 दिनों तक चलता रहा और इसके बाद समतल जमीन को मिट्टी और कंकड़ से तैयार कर कच्ची सड़क बनाई गई. वादे के मुताबिक 14 अगस्त को जब समरथ गांव पहुंचे तो ग्रामीण उन्हें उस रास्ते पर ले गए जहां से बच्चों और टीचर को 6 किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता था. आखिर ग्रामीणों ने अपना वादा पूरा किया और अगले दिन समरथ अपनी बाइक से स्कूल पहुंचे थे.
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शिक्षा के लिए समरथ ने बढ़ाई थी जागरुकता
गांव में शिक्षा को लेकर गांववालों की रुचि नहीं थी. गांव के लोगों का मानना था कि ना तो स्कूल में संसाधन है और ना ही बच्चों के लिए कोई सुविधा. जब समरथ ने स्कूल ज्वाइन किया था तो उन्होंने गांव के लोगों को जागरूक करना शुरू किया. वह खुद ग्रामीणों के पास जाते और उन्हें बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते थे. उन्हें जब लगा कि इस तरह बच्चों का नामांकन नहीं बढ़ेगा तो अपने स्तर पर ही सर्वे शुरू किया. इस दौरान बच्चों की संख्या करीब 32 . समरथ इन बच्चों के साथ दूसरे बच्चों के पास जाते और उन्हें पढ़ाई के लिए जागरूक करते. इस कोशिश का नतीजा ये रहा कि एक साल में बच्चों की संख्या बढ़कर 70 हो गई. ये समरथ की कोशिशों का ही नतीजा था कि गांव के लोग शिक्षा के लिए जागरुक हुए. इसलिए पीपलीखेत गांव के लोग चाहते हैं कि समरथ इसी गांव में रहें और उनके बच्चों को शिक्षा दें. सही मायने में शिक्षा के प्रति ये समर्पण ही समाज को जागरुक बनाएगा.
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