Ramcharitmanas Controversy: सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बताया बकवास, सरकार से की बैन लगाने की मांग

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jan 22, 2023, 07:51 PM IST

Ramcharitmanas को लेकर सबसे पहल बिहार के कैबिनेट मंत्री ने विवादित बयान दिया है जिसके बाद एक नई बहस छिड़ गई है.

डीएनए हिंदी: रामचरितमानस को लेकर एक बार फिर बवाल मच गया है और इस बार इसकी वजह एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य का एक बयान है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बकवास बताया है और उन्होंने सरकार से मांग की है कि इसे बैन कर दिया जाना चाहिए क्योंकि यह दकियानूसी है. उनके इस बयान पर एक बार फिर धर्म की सियासत गर्म हो गई है. 

स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, "तुलसीदास की रामायण को प्रतिबंधित करना चाहिए. जिस दकियानूसी साहित्य में पिछड़ों और दलितों को गाली दी गई हो उसे प्रतिबंधित होना चाहिए." स्वामी प्रसाद मौर्य ने आगे कहा, "अगर सरकार तुलसीदास की रामायण को प्रतिबंधित नहीं कर सकती तो उन श्लोकों को रामायण से निकालना चाहिए."

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स्वामी प्रसाद ने कहा है कि कई करोड़ लोग रामचरितमानस नहीं पढ़ते. सब बकवास है. अपनी खुशी के लिए तुलसीदास ने यह लिखा है. स्वामी प्रसाद इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने कहा, "सरकार को इस पुस्तक को ही बैन कर देना चाहिए." स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, "तुलसीदास की रामायण में कुछ ऐसे अंश हैं, जिन पर हमें आपत्ति है. किसी भी धर्म में किसी को गाली देने का हक नहीं है. तुलसीदास की रामायण में चौपाई है. इसमें वह शुद्रों को अधम जाति का होने का सर्टिफिकेट दे रहे हैं."

रामचरित मानस की चौपाइयों को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, "स्वामी ब्राह्मण भले ही दुराचारी, लंपट, अनपढ़ या गंवार हो, लेकिन वह ब्राह्मण है तो उसे पूजनीय कहा गया है. मगर शुद्र कितना भी पढ़ा-लिखा या फिर ज्ञानी हो उसका सम्मान मत करिए. क्या यही धर्म है? अगर धर्म यही है तो ऐसे धर्म को मैं नमस्कार करता हूं. जो धर्म हमारा सत्यानाश चाहता है, ऐसे धर्म का सत्यानाश हो."

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इसके अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य ने बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री को लेकर भी बयान दिया है. उन्होंने कहा कि धर्म के ठेकेदार ही धर्म का सौदा कर रहे हैं, यह देश का दुर्भाग्य है. समाज सुधारकों की कोशिशों से ही देश आज तरक्की की राह पर है. लेकिन दकियानूसी सोच वाले बाबा समाज में अंधविश्वास, ढकोसला और रूढ़िवादी परंपराओं को फैलाने की कोशिश कर रहे हैं. बता दें कि धीरेंद्र शास्त्री पर कथा के दौरान अंधविश्वास को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं.

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