रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं रहे, बुधवार को मुंबई में उनका निधन हो गया. उनके निधन की खबर सुनकर पूरा देश स्तब्ध है. रतन टाटा ने 1991 में टाटा ग्रुप के चेयरमैन का पद ग्रहण किया था. उनसे पहले इस पद पर उनके चाचा जेआरडी टाटा बैठे थे. जेआरडी टाटा का नाम भी उद्योग और समाजसेवा के जगत में सम्मानीय रहा है. उन्होंने देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को खत लिखकर लोकतंत्र में विपक्ष की अहमियत को समझाया था.
जेआरडी टाटा ने क्यों लिखा था खत
ये बात साल 1961 की है, वरिष्ठ राजनेता सी राजगोपालाचारी की अपना नया दल 'स्वतंत्र पार्टी' बनाई. राजगोपालाचारी ने अपनी पार्टी की मदद देने के लिए जेआरडी टाटा से अनुरोध किया. टाटा कंपनी मूल रूप से कांग्रेस को सियसी तौर पर फंडिंग करती थी. जेआरडी टाटा ने महसूस किया कि सच्चे लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत होना बेहद जरूरी है. विपक्ष की भूमिका को मजबूत बनाने के लिए वो 'स्वतंत्र पार्टी' को फंड करने लगे.
कई लोगों ने इस बात को लेकर उनपर सवाल भी उठाए. जेआरडी टाटा ने इस बात को लेकर तत्कालीन पीएम पंडित नेहरू को खत लिखा. इस खत में उन्होंने लिखा कि 'वो स्वतंत्र पार्टी को भी दान देंगे क्योंकि एक मजबूत लोकतंत्र में एक रचनात्मक विपक्ष का होना बेहद जरूरी है. ताकि समय-समय पर अलग-अलग मुद्दों पर सरकार को सही और गलत बताया जा सके.'
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समाजसेवा के क्षेत्र में जेआरडी टाटा का बड़ा योगदान
रतन टाटा की तरह ही जेआरडी टाटा भी एक उद्योग के साथ एक समाजसेवी भी थे. साथ ही वो देश और समाज की चिंता करते थे. देश के लोगों के बहतरी के लिए उन्होंने कई अस्पताल और स्कूल-कॉलेज खोले. साथ ही कई इंडस्ट्री लगाए, जहां बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दिया. समाज निर्मीण में उनका अहम योगदान रहा है.
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