डीएनए हिंदी: सनी देओल का तारीख पर तारीख डायलॉग तो हर किसी ने सुना ही होगा. ऐसा ही एक मामला महाराष्ट्र से आया है. 200 रुपये की घूसखोरी का मामला पिछले 25 सालों से चला आ रहा था. सरकारी इंजीनियर के खिलाफ चल रहा यह केस 25 साल में हाई कोर्ट तक पहुंच गया. अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने सबूतों के अभाव में आरोपी को बरी कर दिया है. हालांकि, इन 25 सालों में आरोपी प्रवीण शेल्के ने कानूनी लड़ाई के लिए लाखों रुपये खर्च कर डाले हैं.
साल 1998 में महाराष्ट्र के एंटी करप्शन ब्यूरो ने सोलापुर से प्रवीण शेल्के को 200 रुपये की घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था. जूनियर इंजीनियर प्रवीण शेल्के को नौकरी से भी निकाल दिया गया. साल 2002 में उन्हें दोषी करार दिया और दो साल की सजा सुनाई. नौकरी से निकाले जाने की वजह से प्रवीण शेल्के का परिवार बिखर गया. उनकी बीवी और बच्चे भी उनका साथ छोड़ गए.
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हाई कोर्ट ने सबूतों के अभाव में किया बरी
इन सालों में अकेले रहने के बावजूद प्रवीण शेल्के ने कानूनी लड़ाई जारी रखी. हाई कोर्ट में प्रवीण शेल्के के वकील ने कहा कि सरकारी पक्ष यह साबित नहीं कर पाया है कि प्रवीण शेल्के ने घूस मांगी या ली. आरोप है कि प्रवीण शेल्के ने वायर देने के बदले घूस मांगी. उनके वकील ने कहा कि यह काम तो प्रवीण की ड्यूटी का हिस्सा ही नहीं था.
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हाई कोर्ट ने भी माना कि सबूत इतने नहीं हैं कि वे प्रवीण शेल्के को दोषी साबित करें. ऐसे में प्रवीण शेल्क को रिहा कर दिया गया. प्रवीण शेल्के ने कहा कि जब उन्हें नौकरी से निकाला गया तो 18 साल की सर्विस बाकी थी. इस चक्कर में उन्हें करोड़ों का नुकसान हुआ और मुकदमेबाजी में दो लाख रुपये जेब से खर्च हो गए. अब वह इन पैसों के मुआवजे के लिए भी कानूनी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं.
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