'पड़ोसी देश के हिंदू भी हमारी जिम्मेदारी, ध्यान दे सरकार', Bangladesh Violence पर बोले RSS चीफ Mohan Bhagwat

Written By मीना प्रजापति | Updated: Aug 15, 2024, 01:00 PM IST

आजादी के 78वें समारोह पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बांग्लादेश हिंसा का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए कहा कि पड़ोसी देशों के हिंदुओं को बचाना भी हमारी जिम्मेदारी है. हमने हमेशा सभी की मदद की है. यही हमारी नीति रही है.


देश आज 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर स्थित संघ के मुख्यालय पर तिरंगा झंडा फहराया. इस मौके पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं दीं और केंद्र सरकार को भी बांग्लादेश हिंसा पर ध्यान देने की ओर इशारा किया. 

'भारत ने हमेशा दूसरों की मदद की'
आरएसएस चीफ मोहन भागवत (RSS Chief speech on Independence day) ने बांग्लादेश का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए कहा कि 'पड़ोसी देश में उत्पात हो रहे हैं. बाहर रहने वाले हिंदुओं को बिना कारण ही उसकी गर्मी झेलनी पड़ रही है. भारतवर्ष ऐसा है जहां स्व की रक्षा और स्वयं की स्वतंत्रता का दायित्व रहा है, लेकिन भारत की परंपरा रही है कि भारत दुनिया के उपकार के लिए अपने आप को बड़ा करता है. 

'कुछ मामले सरकार को खुद निपटाने होते हैं'
मोहन भागवत ने मोदी सरकार को नसीहत देते हुए भी कहा कि पिछले वर्षों में हमने देखा कि हमने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया. जो संकट में था उसकी मदद की. ये हमारा देश है. ऐसा हमको चलना है. अपना देश ठीक रहे और अन्य देशों को ठीक होना है, उनको हमारी मदद हो. उन देशों में अस्थिरता, अराजकता की गर्मी झेलने वाले लोग हैं, उन पर कोई कष्ट न हो, उन पर कोई अत्याचार न अन्याय न हो, ये देखना है, इसके लिए एक देश के नाते हमारे सिर पर जिम्मेदारी है. कुछ मामले तो सरकार को अपने स्तर से ही करने पड़ते हैं.  

 

'बांग्लादेश ही नहीं मणिपुर हिंसा पर भी दी थी नसीहत'
ऐसा नहीं है कि संघ प्रमुख ने पहली बार केंद्र सरकार को लेकर तीखा रुख अपनाया है. जब-जब संघ प्रमुख को लगता है कि पार्टी अहंकार या अपना काम ठीक से नहीं कर रही है तब-तब वे एक संरक्षक की भूमिका में रहे हैं. बांग्लादेश हिंसा ही नहीं मणिपुर हिंसा पर भी मोहन भागवत ने कहा था कि एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है. इससे पहले 10 साल शांत रहा. पुराना गन कल्चर समाप्त हो गया, ऐसा लगा. और अचानक जो कलह वहां पर उपजा या उपजाया गया, उसकी आग में अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है. इस पर कौन ध्यान देगा? प्राथमिकता देकर उसका विचार करना यह कर्तव्य है. 

'पार्टी नेताओं को ज़रूरी सलाह'
भागवत समय-समय पर पार्टी नेताओं को सलाहियत देते रहे हैं. इससे पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण के ठीक बाद उन्होंने कहा था कि समाज ने अपना मत दे दिया. उसके अनुसार सब होगा. क्यों, कैसे, इसमें हम लोग नहीं पड़ते. हम लोकमत परिष्कार का अपना कर्तव्य करते रहते हैं. यही नहीं भागवत ने इससे पहले भी नागपुर में एक कार्यक्रम में कहा था कि एक सच्चा सेवक काम करते समय मर्यादा बनाए रखता है. जो मर्यादा बनाए रखता है वही अपना काम करता है. लेकिन अनासक्त रहता है. उसमें कोई अहंकार नहीं होता है कि मैंने ये किया. केवल ऐसे व्यक्ति को ही सेवक कहलाने का अधिकार है. 


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स्वतंत्रता भी संदेश भी...
78वें स्वतंत्रता दिवस पर आगे मोहन भागवत ने कहा कि जब गुलामी थी तब स्वतंत्रता लाने के लिए मरना भी पड़ा. आज जो सीमा पर हैं उनके परिवारों की चिंता भी हमारी है. देश के लिए चलने वाले सभी प्रयासों में सहयोगी बनना. किसी भी प्रकार की अराजकता नहीं फैलाना. दुनिया को अस्थिर नहीं करना. ये जब सामान्य समाज करता है तो  उसे स्थिर रखने का सामर्थ्य देश के शासन का भी बन जाता है. 

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