डीएनए हिंदी: भारत में समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने की मांग चल रही है. इसके लिए देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने इस मामले पर लंबी बहस और सुनवाई के बाद 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज यानी 17 अक्टूबर को यह फैसला सुनाया जाना है. इस मामले की सुनवाई के दौरान भारत सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि भारत सरकार इस समस्या के हल के लिए एक कमेटी बनाने के लिए तैयार है. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में मांग की गई थी कि समलैंगिक विवाह को कानूनी तौर पर मान्यता दी जाए.
पांच जजों की संविधान बेंच आज सुबह 10:30 बजे इस पर अपना फैसला सुनाएगी. इस बेंच में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रविंद्र भट, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं. इसी साल मई के महीने में सात दिनों तक सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने संबंधी दर्जनों याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी.
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क्या है LGBT समुदाय की मांग?
सुप्रीम कोर्ट में लगभग 20 याचिकाएं दायर की गई हैं कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाए. साल 2018 में IPC की धारा 377 को खत्म किया गया था. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि 2018 के इस फैसले के मुताबिक, दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाता है. इसी आधार पर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता भी दी जानी चाहिए.
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कोर्ट में सुनवाई के दौरान तर्क रखे गए थे कि समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता न होने की वजह से उन्हें एक कपल के तौर पर बैंक से लोन लेने, अन्य कानूनी दस्तावेजों में नाम दर्ज करवाने या ऐसे कई जरूरी कामों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसे में इस तरह के विवाह को भी मान्यता दी जानी चाहिए. इस पर केंद्र सरकार ने कहा था कि वह समस्या को सुलझाने के लिए कमेटी बना सकती है लेकिन इस कमेटी में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर विचार नहीं किया जाएगा.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से ही पूछा था कि वह बताए कि वह समलैंगिक समुदाय के लिए क्या कदम उठाना चाहती है? इस पर सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि याचिकाकर्ता चाहते हैं कि समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत मान्यता मिले लेकिन यह कानून सिर्फ अपोजिट जेंडर वालों के लिए है. उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार निजी रिश्तों को मान्यता देने के लिए बाध्य नहीं है.
सुनवाई में क्या-क्या हुआ?
-18 अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह देखेगा कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट 1954 के तहत सेम सेक्स मैरिज को मान्यता दी जा सकती है या नहीं है.
-19 अप्रैल को केंद्र सरकार ने इस बहस में राज्यों को भी शामिल करने की मांग की. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सरोगेसी, बैंक लोन, अडॉप्शन और अनुकंपा की नौकरियो जैसी चीजों के लिए जरूरी है कानूनी मान्यता.
-20 अप्रैल को बच्चे को गोद लेने के मामले पर बहस हुई. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि LGBTQ समुदाय के लोग भी दूसरे लोगों की तरह ही योग्य और बच्चों की परवरिश करने में सक्षम हैं.
-25 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर स्पेशल मैरिज के तहत मान्यता दी जाएगी तो पर्सनल लॉ में भी बदलाव करने पड़ेंगे.
-26 अप्रैल को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि LGBTQIA+ में + का मतलब क्या है, यह स्पष्ट नहीं है. इसमें 72 शेड्स और कैटगरी आती हैं ऐसे में एक ही कानून अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग नजरिया नहीं रख सकता.
-27 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकों को समाज से अलग नहीं किया जा सकता इसलिए सरकार बताए कि वह इस समाज के लिए क्या कदम उठाने वाली है.
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