'Free Speech का मतलब हेट स्पीच नहीं होना चाहिए' सनातन धर्म विवाद पर बोला मद्रास हाई कोर्ट

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Sep 16, 2023, 05:58 PM IST

Madras High Court (file Photo)

Sanatana Dharma Row: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन के सनातन को जड़ से खत्म करने के बयान पर विवाद चल रहा है. इसी विवाद में अब मद्रास हाई कोर्ट ने यह अहम टिप्पणी की है.

डीएनए हिंदी: Sanatana Dharma Remarks Controversy- देश में अभिव्यक्ति की आजादी यानी Free Speech के नाम पर अनर्गल बयान देने वालों के लिए मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम कमेंट किया है. मद्रास हाई कोर्ट ने शनिवार को कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी किसी भी तरह से घृणा फैलाने वाला बयान (Hate Speech) नहीं होनी चाहिए. हाई कोर्ट का यह अहम कमेंट देश में सनातन धर्म (Sanatana Dharma) पर बयानबाजी के कारण चल रहे विवाद के बीच आया है, जो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन (Udhayanidhi Stalin) के सनातन धर्म को समूल नाश करने के बयान से शुरू हुआ है. इसके अलावा भी देश में कई जगह फ्री स्पीच के नाम पर धार्मिक मामलों को लेकर विवादित टिप्पणी करने के मामले सामने आ चुके हैं.

फ्री स्पीच पर ये बोली हाई कोर्ट बेंच

मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस एन. शेषासई ने कहा, फ्री स्पीच संविधान में दिए मूल अधिकारों में शामिल है, लेकिन यह हेट स्पीच में नहीं बदल जाना चाहिए. खासतौर पर जब मामला धर्म से जुड़ा हो. बोलने वाले को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि उसके बयान से किसी को हानि नहीं पहुंचनी चाहिए. जस्टिस शेषासई ने कहा. हर धर्म एक विश्वास पर आधारित है और यह आस्था पूरी तरह आतार्किकता पर आधारित है. इसी कारण जब धर्म से जुड़े मुद्दे पर बयानबाजीकी जाओ तो यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके चलते किसी को नुकसान नहीं होना चाहिए. दूसरे शब्दों में कहें तो फ्री स्पीच किसी भी तरह हेट स्पीच नहीं हो सकती.

'शाश्वत कर्तव्यों का समूह है सनातन'

जस्टिस शेषासई ने अभिव्यक्ति की आजादी की व्याख्या करते हुए सनातन धर्म की भी व्याख्या की. उन्होंने कहा, सनातन धर्म शाश्वत कर्तव्यों का समूह है. ये कर्तव्य देश, अपने माता-पिता, राजा और अपने गुरुओं व शिक्षकों तथा गरीबों की देखभाल से जुड़े हैं. उन्होंने सनातन धर्म का नाश करने की टिप्पणी पर आश्चर्य जताया. उन्होंने कहा, मैं हैरान हूं कि ऐसे कर्तव्यों का नाश क्यों करना चाहिए? 

सरकारी कॉलेज के सर्कुलर के खिलाफ याचिका सुन रहा है हाई कोर्ट

जस्टिस एन. शेषासई ने यह सारे कमेंट उस याचिका पर सुनवाई में दिए, जिसमें याची एलनगोवान ने स्थानीय सरकारी आर्ट्स कॉलेज के एक सर्कुलर को चुनौती दी है. इस सर्कुलर में कहा गया है कि छात्रों को दिए हुए टॉपिक 'सनातन का विरोध' पर अपने विचार प्रकट करने हैं. याचिकाकर्ता ने इसके जरिये सनातन धर्म को लेकर हो रही जोरदार और कभी-कभी शोर-शराबे वाली बहसों पर चिंता जताई है. याचिकाकर्ता का कहना है कि ऐसा लग रहा है सनातन धर्म पूरी तरह से जातिवाद और अस्पृश्यता को बढ़ावा देने वाला है, इस विचार ने जोर पकड़ लिया है, जबकि यह एक ऐसी धारणा, जिसे दृढ़ता से खारिज किया जा चुका है.

'देश में छुआछूत बर्दाश्त नहीं की जा सकती'

जस्टिस शेषासई ने कहा, समान नागरिकों वाले देश में छुआछूत बर्दाश्त नहीं की जा सकती है. उन्होंने कहा, यह तब भी असहनीय है, यदि इसे सनातन धर्म के मूल्यों में उचित माना गया है. संविधान के अनुच्छेद 17 के लागू होने के बाद इसके (छुआछूत या अस्पृश्यता) के लिए कोई जगह नहीं है. इस अनुच्छेद में साफ घोषित किया गया है कि अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया है. 

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