डीएनए हिंदीः केंद्र सरकार ने देश में चीता संरक्षण को लेकर नई चीता टास्क फोर्स (Task Force) का गठन किया है. इसमें वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट के डीन और जाने-माने जीवविज्ञानी यादवेंद्र देव विक्रम सिंह झाला (Yadvendradev Vikramsinh Jhala) को जगह नहीं दी गई है. वह पिछले 13 साल से इस प्रोजेक्ट से जुड़े थे. नामीबिया से जब चीते भारत लाए गए तो सप्ताह भर देखभाल इन्हीं के नेतृत्व में की गई थी. इस फैसले को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं.
झाला की देखरेख में तैयार हुई पहली रिपोर्ट
झाला 2009 से इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़े हुए हैं. यहां तक कि 2010 में जब एमके रंजीतसिंह के नेतृत्व में चीता टास्क फोर्स का गठन किया था तब वह इसके सदस्य थे. यादवेंद्र देव विक्रम सिंह झाला ने रंजीत सिंह के साथ चीता रिलीज साइटों पर पहली रिपोर्ट तैयार की थी. उस दौरान तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने उन्हें 2009 में सर्वेक्षण का काम सौंपा था. झाला नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका में वन्यजीव जीवविज्ञानियों के साथ तकनीकी बातचीत का नेतृत्व भी कर रहे थे.
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नामीबिया से चीतों के भारत आने के बाद 20 सितंबर को जब राष्ट्रीय चीता संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने नामीबिया के आठ चीतों को अपने नए घर यानी कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में लाया गया को इनकी निगरानी के लिए 9 सदस्यीय टास्क फोर्स की स्थापना की गई. इस टीम को ही फैसला लेना था कि चीतों को कम बड़े बाड़ों में छोड़ा जाए या खुला रखा जाए. इस टीम में झाला को जगह नहीं मिली. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक झाला को टास्क फोर्स में शामिल ना किए जाने को लेकर रंजीत सिंह ने कहा कि नई टास्क फोर्स के गठन या इसके सदस्यों के चयन पर उनसे सलाह नहीं ली गई थी.
वहीं एनटीसीए मेंबर सचिव एसपी यादव ने भी झाला के मामले में किसी तरह का कमेंट करने से इनकार कर दिया. यादव के एक सहायक अधिकारी ने बताया कि झाला की मौजूदगी कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट हो सकती थी. उन्होंने कहा, ‘नई टास्क फोर्स का गठन चीता की देख रेख करने के लिए किया गया है. वह (झाला) अपने काम भी मॉनिटर नहीं कर सकते हैं.’
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