डीएनए हिंदी: Sharad Yadav Life Story- राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के संयोजक के तौर पर भाजपा के उत्थान में अहम भूमिका निभाने वाले साम्यवादी नेता शरद यादव (Sharad Yadav) का बृहस्पतिवार को निधन हो गया. वे 75 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. मध्य प्रदेश के एक किसान परिवार से निकलकर 7 बार लोकसभा और 3 बार राज्यसभा सांसद बनने तक के सफर में शरद यादव ने भारतीय राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी. वे कई बड़े उलटफेर के साक्षी बने या फिर उनमें शामिल रहे. शरद पवार ने राममनोहर लोहिया के शिष्य के तौर पर राजनीतिक और जयप्रकाश नारायण के विचारों के साथ संसदीय सफर शुरू किया था. इसके बाद वे आखिरी सांस तक भारतीय साम्यवादी राजनीति के सभी छोर फिर से जनता दल के झंडे तले एकसाथ लाने का सपना देखते रहे. इसके लिए उन्होंने अपने पुराने दोस्त और फिर लंबे समय तक धुर विरोधी रहे लालू प्रसाद यादव की पार्टी में अपनी पार्टी का विलय भी कर लिया, लेकिन आखिर में यह सपना अपने साथ लेकर ही वे इस दुनिया को अलविदा कह गए.
आइए 6 पॉइंट्स में आपको बताते हैं सत्ता से ज्यादा अपनी शर्तों पर जीने को अहमियत देने वाले शरद यादव के जीवन की कुछ खास दास्तान.
1. देश की आजादी के साथ हुआ जन्म
शरद यादव का जन्म देश की आजादी से महज डेढ़ महीना पहले 1 जुलाई, 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गांव में हुआ था. किसान परिवार में जन्मे शरद यादव शुरुआत में इंजीनियर बनने का सपना देखा करते थे. इंजीनियरिंग करने के लिए उन्होंने 1971 में जबलपुर आकर एडमिशन लिया और यहीं से उनकी जिंदगी की राह बदल गई. उन्होंने बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडल हासिल किया, लेकिन पुलों-बिल्डिंगों का निर्माण करने के बजाय देश निर्माण के लिए राजनीतिक राह चुन ली.
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2. लोहिया के विचार पढ़ते थे यही राजनीति में ले आए
शरद यादव के ऊपर राममनोहर लोहिया के साम्यवादी विचारों का जबरदस्त असर था. उन्होंने लोहिया के आंदोलनों में भाग भी लिया. लोहिया के विचार पढ़ते-पढ़ते उन्हें राजनीति के जरिये समाज सुधार की राह दिखी और उन्होंने दोस्तों के कहने पर छात्र संघ का चुनाव लड़ लिया. जीतकर छात्रसंघ अध्यक्ष बने और बस राजनीतिक राह पर सफर शुरू हो गया. साल 1970, 72 और 75 में मीसा कानून (Misa Act) के तहत गिरफ्तार भी किए गए.
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3. पहली बार जेपी ने बनाया सांसद
शरद यादव ने पहली बार साल 1974 में जबलपुर लोकसभा से जयप्रकाश नारायण के कहने पर हलधर किसान के तौर पर चुनाव लड़ा. जेपी आंदोलन की लहर में वे जीतकर पहली बार संसद पहुंचे. इसके बाद वे 1977 में फिर से जबलपुर से लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 1989 में उत्तर प्रदेश की बदायूं सीट, 1991 में बिहार की मधेपुरा सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे. इसके बाद भी उन्होंने 1996, 1999 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीता. इसके अलावा वे 1986, 2004 और 2014 में राज्यसभा सांसद रहे.
4. तीन राज्यों से जीत चुके हैं लोकसभा सांसद
शरद यादव भारतीय राजनीति में पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने तीन अलग-अलग राज्यों से लोकसभा चुनाव लड़ा और हर जगह जीत हासिल की. इसलिए कहा जाता था कि उनकी तूती मध्य प्रदेश से लेकर यूपी-बिहार तक बराबर बजती है. वे मध्य प्रदेश की जबलपुर, उत्तर प्रदेश की बदांयू और बिहार की मधेपुरा सीट से सांसद रहे थे.
5. लालू की लोकप्रियता के चरम पर उन्हें हराया
शरद यादव ने लालू प्रसाद यादव को न केवल जनता दल पर कब्जे की लड़ाई में नाको चने चबाए थे, बल्कि राजनीतिक लड़ाई में उन्हें एक बार करारी पटखनी दी थी. शरद यादव ने साल 1999 में लालू प्रसाद यादव को लोकसभा चुनाव में तब हराया, जब बिहार में यह कहा जाता था कि लालू यदि चुनाव लड़ने के लिए कुत्ता भी खड़ा कर दें तो जनता उसे भी जिता देती है.
6. केंद्र सरकार में कई विभागों के मंत्री रहे
शरद यादव ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन के दौरान केंद्र सरकार में कई मंत्रालय भी संभाले और संसदीय समितियों की भी अध्यक्षता की. वे कपड़ा मंत्री, नागरिक उड्डयन मंत्री, श्रम मंत्री, उपभोक्ता मामले व सार्वजनिक खाद्य वितरण मंत्री रहे. इसके अलावा संसद की वित्त समिति और शहरी विकास समिति के अध्यक्ष भी रहे.
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