डीएनए हिंदी: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने छोटे सैटलाइट भेजने के लिए रविवार को अपने पहले स्मॉल सैटलाइट लॉन्चिंग व्हीकल का इस्तेमाल किया. हालांकि, कुछ तकनीकी गड़बड़ियों की वजह से इन सैटलाइट का संपर्क टूट गया. अब इसरो ने बताया है कि ये सैटलाइट गलत ऑर्बिट में स्थापित हो गए हैं इस वजह से ये किसी काम के नहीं हैं. इसरो ने पहली बार इस तरह की कोशिश की थी कि छोटे सैटलाइट को भेजने के लिए कम क्षमता वाले लॉन्चिंग व्हीकल का इस्तेमाल किया जाए जिससे इसकी लागत कम की जाए.
इसरो ने जानकारी दी है कि जो SSLV-D1 ने जो सैटलाइट भेजे हैं वे 365 किलोमीटर के सर्कुलर ऑर्बिट के बजाय 356X76 किलोमीटर के इलिप्टिकल ऑर्बिट में चला गया है. इस वजह से ये सैटलाइट अब किसी काम के नहीं रहे हैं. समस्या की पहचान सही से हो कर ली गई है. सेंसर में गड़बड़ी का पता नहीं लगाया जा सका इस वजह से यह सैटलाइट अपने रास्ते से हट गया.
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अब SSLV-D2 को लॉन्च करेगा इसरो
इस मामले में एक कमेटी बनाई जाएगी जो गड़बड़ियों की जांच करेगी और सुझाव देगी. इन सुझावों को लागू करके समस्याएं दूर की जाएंगी. इसरो ने ऐलान किया है कि वह नए सिरे से SSLV-D2 को लॉन्च करेगा. साथ ही, यह भी बताया गया है कि इसरो के चेयरमैन इस बारे में जल्द ही एक विस्तृत बयान जारी करेंगे.
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SSLV का इस्तेमाल छोटे सैटलाइट लॉन्च करने के लिए किया जाता है. इसकी मदद से निचले ऑर्बिट में 500 किलोग्राम के सैटलाइट स्थापित किए जाते हैं. SSLV की खासियत यह है कि इसे महज 72 घंटों में तैयार किया जा सकता है और 4-स्टेज प्रोपल्शन पर काम करता है.
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