'मैं सीएम की कुर्सी से इस्तीफ़ा देने जा रहा हूं और मैं तब तक सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा जब तक जनता अपना फैसला न सुना दे.'
दिल्ली शराब घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट से बेल पर बाहर आने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री ने यही बातें पार्टी कार्यालय में कहीं थीं. इस दावे के बाद कालकाजी सीट से विधायक आतिशी को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया. चुनाव होने तक कैबिनेट मंत्री आतिशी मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालेंगी. अब लोगों के मन में सवाल है कि सीएम जब जेल में थे तब उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान और उसके बाद हरियाणा में भी आम आदमी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार कर रही थीं. फिर दिल्ली की राजनीति में उनकी सक्रिय भूमिका नजर आने के बावजूद केजरीवाल ने अपनी पत्नी को दिल्ली का सीएम नहीं चुना बल्कि आतिशी को चुना. ऐसा क्यों?
नीतिश कुमार और हेमंत सोरेन के नक्शे कदम पर नहीं चले केजरीवाल?
इतिहास देखें तो साल 2014 में बिहार में नीतिश कुमार ने जब इस्तीफा दिया तब सीएम पद के लिए जीतन राम मांझी पर भरोसा किया. झारखंड में हेमंत सोरेन ने जनवरी 2024 में जेल जाने से पहले चंपाई सोरेन को सीएम बनाया. हालांकि, नीतिश कुमार और हेमंत सोरेन की वापसी पर जीतन राम मांझी और चंपाई सोरेन ने अपनी राहें अलग कर लीं और भाजपा के साथ हाथ मिला लिया. लोगों ने ये भी अटकलें लगाईं कि अरविंद केजरीवाल ने नीतिश या हेमंत वाला तरीका क्यों नहीं अपनाया. अपनी पत्नी को सीएम पद न देकर आतिशी को क्यों दिया?
परिवारवाद का आरोप और विधायक न होना है वजह
अरविंद केजरीवाल ने अपनी पत्नी को सीएम पद के लिए क्यों नहीं चुना इस सवाल के जवाब में लंबे समय से दिल्ली की राजनीति पर अपनी गहरी समझ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने बताया कि अगर अरविंद केजरीवाल अपनी पत्नी को सीएम पद के लिए चुनते तो उनके ऊपर आरोप लगता कि वे परिवारवाद कर रहे हैं. साल 2012 में आम आदमी पार्टी जब बनी थी तब उन्होंने राजनीति में भ्रष्टाचार और बाकी बुराइयों को खत्म करने के साथ ही परिवारवाद भी आलोचना की थी. साथ भारतीय जनता पार्टी भी आएदिन परिवारवाद को लेकर बयान देती रहती है. इन आलोचनाओं से बचने के लिए अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को सीएम बनाने का फैसला लिया. दूसरा, सुनीता केजरवाल विधायक नहीं हैं. बिना विधायक बने किसी नेता को सीएम की कुर्सी नहीं सौंपी जा सकती. तीसरी बात, सुनीता केजरीवाल के पास कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं है.
आतिशी ही क्यों बनीं मुख्यमंत्री पद की पसंद
आम आदमी पार्टी के नेता सोमनाथ भारती ने अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' से बातचीत में बताया कि जब अरविंद जी और मनीष जी जेल में थे, तब आतिशी ने पार्टी से जुड़े मसलों को संभालने के मामले में अपना लोहा मनवाया है. अरविंद और सिसोदिया के निर्देशों को आतिशी ही विधायकों और पार्षदों तक पहुंचा रही थीं. इसके अलावा आतिशी पार्टी में महिला चेहरा भी हैं. यही नहीं बीते दिनों दिल्ली में पानी जब संकट छाया तब आतिशी अनिश्चिकालीन अनशन किया. तबीयत खराब होने पर अनशन खत्म किया. आतिशी के पास दिल्ली सरकार में फिलहाल 14 विभागों की जिम्मेदारी है. इसमें वित्त, शिक्षा और बिजली जैसे बड़े विभाग भी शामिल हैं. अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की गैर हाजिरी में आतिशी सक्रिय रूप से आगे बढ़ीं. यही वजह थी कि अरविंद केजरीवाल ने जेल मे रहते हुए आतिशी को 15 अगस्त पर झंडा फहराने के लिए चिट्ठी लिखी थी. हालांकि उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिल्ली सरकार में मंत्री कैलाश गहलोत को झंडा फहराने के लिए नामित किया था.
आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी देना चाहती है ये 6 संदेश
दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफेसर अमित कुमार का कहना है कि साल 2025 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हैं. अरविंद केजरीवाल का जेल जाना और उससे पहले मनीष सिसोदिया के जेल जाने से दिल्ली की जनता में यह बात घर कर रही है कि बीजेपी की नीति हो या कुछ और लेकिन आम आदमी पार्टि कहीं ना कहीं से दोषी रही है, जिससे लोगों में अरविंद के खिलाफ मामूली ही सही शंका तो रहने लगी है. प्रोफेसर अमित कुमार के मुताबिक आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे निम्न वजहें हो सकती हैं :
- अरविंद केजरीवाल यह मैसेज देना चाहते है कि उनकी पार्टी व नेतृत्व परिवारवाद से हटकर राष्ट्रवाद को प्रमुख मानता है, जबकि कांग्रेस, बीजेपी सहित अन्य दलों में भी परिवारवाद देखा जाता रहा है.
- अरविंद केजरीवाल द्वारा आतिशी का नाम उठाना मतलब खुद कुर्सी पर ना होते हुए भी उस कुर्सी से अपने निर्णय कराना.
- आतिशी एक स्त्री हैं और स्वाति मालीवाल द्वारा पार्टी पर लगाए जा रहे महिला उत्पीड़न/नजरंदाजी के आरोपों को भी इससे धुलाया जा सकता है.
- अरविन्द केजरीवाल यह मैसेज देना चाहते हैं कि एक गैर राजनीतिक परिवार की स्त्री को भी आम आदमी पार्टी में शीर्ष के नेता व मुख्यमंत्री बन सकते हैं.
- इस तरह की घटना हरियाणा में बीजेपी ने ठीक चुनाव से पूर्व मनोहर लाल खट्टर की जगह पर नायाब सिंह सैनी को 6 महीने पहले ही मुख्यमंत्री बनाया गया. शायद चुनावी माहौल को अरविंद समझ कर बीजेपी की हरियाणा नीति को दिल्ली में भी आजमाने की कोशिश कर रहें हैं.
- यदि दिल्ली में आगामी चुनाव में कोई नुकसान/ हार हो गई तो उसका ठीकरा केजरीवाल व उसके परिवार पर ना फोड़ा जा सके, इसलिए भी ये फैसला लिया गया है.
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आतिशी को सीएम बनाना मास्टरस्ट्रोक या मजबूरी?
राजनीतिक गलियारों में अटकलें लगाई जा रही हैं कि दिल्ली में आतिशी को मुख्यमंत्री बनाए जाने पर दिल्ली की महिला वोटरों को लुभाया जा सकता है. हालांकि, इस पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र का मानना है कि इसका महिला वोटर कोई असर नहीं पड़ेगा. आतिशी कुछ महीनों के लिए मुख्यमंत्री बनाई गई हैं. उन्हें नाममात्र का मुख्यमंत्री बनाया गया है. कमान तो पार्टी में किसी और के हाथ में ही रहेगी. उनके इर्द-गिर्द दूसरे नेता रहेंगे. अरविंद केजरीवाल बेल पर सुप्रीम कोर्ट से बाहर आए हैं, ऐसे में वे किसी फाइल पर साइन नहीं कर सकते. बहुत सी शर्तों के साथ उन्हें जमानत मिली है. ऐसे में वे सरकार वैसे ही नहीं चला सकते. यही वजह है कि आतिशी को मुख्यमंत्री बनाना ही उनके पास विकल्प बचता था.
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