पाकिस्तान में की जासूसी... 30 साल की लड़ाई के बाद अब सुप्रीम कोर्ट से मिला इंसाफ

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Sep 13, 2022, 01:27 PM IST

सुप्रीम कोर्ट

कोटा के रहने वाले महमूद अंसारी ने पाकिस्तान में दो सीक्रेट मिशन को अंजाम दिया था. हालांकि तीसरे मिशन में वह कपड़े गए. 

डीएनए हिंदीः पाकिस्तान (Pakistan) में रहकर दो सीक्रेट मिशन पूरा करने वाले एक जासूस को इंसाफ के लिए अपने ही देश में 30 साल तक इंतजार करना पड़ा. अब उसे सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राहत मिली है. स्पेशल ब्यूरो ऑफ इंटेलिजेंस ने डाक विभाग के एक कर्मचारी को सीक्रेट मिशन पर पाकिस्तान भेजा था. यहां से पकड़ लिया गया और 14 साल जेल में गुजारने पड़े. जब वह वापस लौटकर आया तो सरकार ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. 

क्या है मामला? 
कोटा में रह रहे महमूद अंसारी डाक विभाग में नौकरी करते थे. उन्होंने 1966 में नौकरी ज्वाइन किया था. उनका दावा है कि उन्हें जासूसी के आरोप में पाकिस्तान में पकड़ लिया गया. उन्हें 12 दिसंबर 1976 को पाकिस्तानी रेंजरों ने गिरफ्तार कर लिया था. इसके बाद उनपर मुकदमा चलाया गया और 1978 में पाकिस्तान में उन्हें 14 साल जेल की सजा सुनाई गई. इसके बाद भारत में उनकी नौकरी चली गई. 1980 में उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. 1989 में सजा पूरी होने के बाद वे रिहा कर दिए गए और अपने देश वापस लौटे तो उन्हें नौकरी से बर्खास्त किए जाने की सूचना मिली. इसे लेकर उन्होंने कोर्ट का रुख किया.

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दो सीक्रेट मिशन को दिया अंजाम
महमूद अंसारी के मुताबिक उन्होंने पाकिस्तान में रहकर दो सीक्रेट मिशन को अंजाम दिया था. वह तीसरे मिशन को भी पूरा करने वाले थे लेकिन वह पकड़े गए. भारत आने के 30 साल बाद और लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. ऐडवोकेट समर विजय सिंह के जरिए दाखिल की गई याचिका के मुताबिक, जून 1974 में उन्हें स्पेशल ब्यूरो ऑफ इंटेलिजेंस की तरफ से देश के लिए सीक्रेट ऑपरेशन चलाने की पेशकश की गई. उन्होंने पेशकश कबूल कर ली. डाक विभाग ने भी रिक्वेस्ट को मंजूर कर लिया और उन्हें विभाग की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया. 

सुप्रीम कोर्ट ने दिया 10 लाख रुपये देने का आदेश 
सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस एस. रविंद्र भट की बेंच ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह 'पूर्व जासूस' को 10 लाख रुपये का भुगतान करे. कोर्ट ने पहले तो सरकार को 5 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने को कहा. बाद में जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल की उम्र 75 साल है और आय का कोई स्रोत भी नहीं है तो राशि को बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दिया.

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1980 में डाक विभाग ने बर्खास्त कर दिया
दरअसल अंसारी जब 1989 में रिहाई के बाद वतन वापस आए तो उन्हें डाक विभाग से बर्खास्तग किया जा चुका था. उन्होंने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, जयपुर में अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी। जुलाई 2000 में ट्राइब्यूनल ने दाखिल करने में देरी के कारण उनके आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया. हाईकोर्ट से भी उन्हें इस मामले में कोई राहत नहीं मिली. 2018 में अंसारी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

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