डीएनए हिंदीः देश भर के शैक्षणिक संस्थानों (Educational Institute) में कॉमन ड्रेस कोड (Common Dress Code) लागू करने की मांग को लेकर दाखिल की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह याचिका हमारे हस्तक्षेप के योग्य नहीं है. जज हेमंत गुप्ता और जज सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि यह कोई ऐसा मामला नहीं है, जिसे अदालत में दायर किया जाना चाहिए. याचिका में तर्क दिया गया था कि समानता स्थापित करने और बंधुत्व एवं राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए वर्दी संहिता को लागू किया जाना चाहिए.
अश्विनी उपाध्याय के बेटे ने दाखिल की थी याचिका
यह याचिका अश्विनी उपाध्याय के 18 साल के बेटे और लॉ स्टूडेंट निखिल उपाध्याय की ओर से पेश की गई थी. उनकी ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील गौरव भाटिया ने कहा कि यह एक संवैधानिक मामला है. उन्होंने शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून के तहत सरकारों को निर्देश जारी करने का अनुरोध किया. जब कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई से इनकार कर दिया तो वकील ने इसे वापस ले लिया. याचिकाकर्ता का तर्क था कि इससे देश में समानता, सामाजिक एकता और गरिमा सुनिश्चित हो और देश की एकता और अखंडता सुदृढ़ हो सके.
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यह याचिका कर्नाटक हिजाब विवाद की पृष्ठभूमि में दायर की गई थी. न्यायमूर्ति गुप्ता की अगुवाई वाली यही पीठ राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. वकील अश्विनी उपाध्याय और अश्विनी दुबे के माध्यम से दाखिल की गई जनहित याचिका में केंद्र को ऐसा न्यायिक आयोग या एक विशेषज्ञ पैनल गठित करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था, जो ‘सामाजिक एवं आर्थिक न्याय, सामाजिक धर्मनिरपेक्षता एवं लोकतंत्र के मूल्यों और छात्रों के बीच भाईचारा और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने’ के लिए सुझाव दे सके.
इनपुट- भाषा
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