Supreme Court ने सहारा समूह के निवेशकों को राहत की बड़ी उम्मीद जगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह को फटकार लगाते हुए अपनी संपत्तियां बेचकर निवेशकों के 10,000 करोड़ रुपये चुकाने का आदेश दिया है. जस्टिस संजीव खन्ना, बेला त्रिवेदी और एमएम सुंदरेश की पीठ ने बाजार नियामक सेबी के साथ चल रहे विवाद में मंगलवार को सहारा समूह के ढीले रवैये पर नाराजगी जताई. पीठ ने कहा कि दस साल से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन अभी तक निवेशकों की बकाया राशि जमा नहीं की गई है.
सहारा समूह को सूप्रीम कोर्ट की दो टूक
पीठ ने यह साफ किया कि सेबी की मांग के अनुसार सहारा समूह को अपनी संपत्तियों को बेचकर 10,000 करोड़ रुपये की राशि जमा करनी होगी. इस मामले में सहारा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि समूह को अपनी संपत्तियों को बेचने का उचित अवसर नहीं मिला है और अभी कोई भी खरीदार उनकी संपत्तियों को खरीदने के लिए तैयार नहीं है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल को जवाब देते हुए कहा कि सहारा समूह को पर्याप्त अवसर दिए गए हैं और यह कहना गलत है कि संपत्तियों को बेचने का उचित मौका नहीं मिला है. कोर्ट ने सहारा से उन संपत्तियों की सूची मांगी है जिनकी बिक्री से वह शेष 10,000 करोड़ रुपये चुका सके. इस पर सहारा ने कोर्ट को बताया कि वह 5 सितंबर तक संपत्तियों का ब्यौरा अदालत में पेश करेगा.
बिहार समेत इन राज्यों में सबसे ज्यादा निवेशक
गौरतलब है कि अगस्त 2012 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन (SHICL) को आदेश दिया था कि वे 2008 और 2011 के बीच व्यक्तिगत निवेशकों से जुटाई गई रकम को 15% ब्याज सहित लौटाएं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सहारा समूह में निवेश करने वाले प्रमुख रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड के निवेशक हैं, जो अब अपने पैसे के लिए सालों से इंतजार कर रहे हैं.
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