SC Citizenship Act: धारा-6A की वैधता बरकरार, SC का बड़ा फैसला, जानें NRC और NPR पर होगा इसका कैसा असर

Written By राजा राम | Updated: Oct 17, 2024, 12:34 PM IST

Supreme Court

Supreme Court On Citizenship Act: सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने आज एक बड़ा फैसला सुनाया है. संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से नागरिकता अधिनियम की धारा 6A को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया है.

Supreme Court On Citizenship Act: सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने आज एक बड़ा फैसला सुनाते हुए 4:1 के बहुमत से नागरिकता अधिनियम की धारा 6A को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया है. .ये धारा असम समझौते को मान्यता देती है और असम में शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान करती है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरश, जेबी पारदीवाला, और मनोज मिश्रा वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाया. न्यायमूर्ति पारदीवाला ने असहमति जताते हुए धारा 6ए को असंवैधानिक ठहराया.

नागरिकता अधिनियम की धारा 6A के तहत, वे बांग्लादेशी अप्रवासी जो 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में आए हैं, भारतीय नागरिकता के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. हालांकि, 25 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का अधिकार नहीं है.

इस धारा का उद्देश्य असम समझौते के तहत असम में बांग्लादेश से आने वाले अवैध शरणार्थियों के नागरिकता के मुद्दे का समाधान करना है. याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील दी थी कि 1966 के बाद अवैध प्रवासियों के प्रवेश से राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है और इससे मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 5 दिसंबर 2023 को इस मामले की सुनवाई शुरू की थी. याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि धारा 6A संविधान की प्रीऐम्बल में भाईचारे के सिद्धांत का उल्लंघन करती है. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भाईचारे का मतलब यह नहीं है कि कोई अपने पड़ोसियों को चुनने का अधिकार रखता है. अदालत ने गृह मंत्रालय को निर्देश दिया कि असम और पूर्वोत्तर राज्यों में 25 मार्च 1971 के बाद अवैध प्रवासियों के आगमन के संबंध में आंकड़े पेश करने के लिए कहा है.

इस फैसले से यह स्पष्ट होगा कि प्रवासियों को नागरिकता देने और स्वदेशी असम नागरिकों के अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा. याचिकाकर्ताओं में असम पब्लिक वर्क्स, असम संमिलिता महासंघ और अन्य संगठन शामिल हैं, जो यह कहते हैं कि असम में नागरिकता के लिए  कट-ऑफ तिथि तय करना भेदभावपूर्ण, मनमाना और अवैध है. उनका यह भी कहना है कि राज्य में जनसंख्या में परिवर्तन से स्वदेशी असमिया लोगों की संस्कृति के संरक्षण का अधिकार प्रभावित होगा, जैसा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 में मेंशन है.

नागरिकता अधिनियम की धारा 6A को 1985 में असम समझौते के तहत जोड़ा गया था.यह समझौता भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हुआ, जिन्होंने बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों को हटाने के लिए प्रदर्शन किया था. जिसके बाद  25 मार्च 1971 को एक ड्यू डेट घोषित कर दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय असम में बांग्लादेशी शरणार्थियों की नागरिकता के संबंध में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है. इसके साथ ही, यह स्पष्ट करता है कि असम में अवैध प्रवासियों के मुद्दे को संवैधानिक तरीके से निपटाया जाएगा. यह फैसला न केवल असम बल्कि पूरे देश में नागरिकता के मुद्दों पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है.

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