Supreme Court On Private Property: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है. अपने फैसले में अदालत ने कहा है कि सभी निजी संपत्तियां 'समुदाय के भौतिक संसाधनों' के रूप में नहीं मानी जा सकतीं.पिछले दो दशक से लंबित इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है. जिसमें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) के नेतृत्व में अन्य न्यायाधीश भी शामिल थे.
राज्य का अधिकार सीमित
इस फैसले में स्पष्ट किया गया है कि केवल कुछ निजी संपत्तियां ही संविधान के अनुच्छेद 39(b) के तहत सामुदायिक पुनर्वितरण के लिए विचार की जा सकती हैं. पहले के प्रावधानों के अनुसार, राज्य किसी भी निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता था, बशर्ते वह सामुदायिक हित में हो. अब, न्यायालय ने कहा है कि राज्य का अधिकार सभी संपत्तियों पर लागू नहीं होता है. कोर्ट ने 1978 के बाद दिए गए सभी हाई कोर्ट के आदेशों को पलटने का भी आदेश दिया है.
जजों की अलग - अलग राय
इस मामले में मुख्य न्यायाधीश द्वारा लिखी गई राय में अधिकांश जजों ने सहमति जताई, जबकि जस्टिस B.V. नागरत्ना ने आंशिक सहमति और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने असहमति व्यक्त की. दरअसल, यह मामला 1992 में दायर किया गया था और 2002 में 9 जजों की संवैधानिक पीठ को भेजा गया था. सुनवाई के दौरान यह महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया कि क्या अनुच्छेद 39(b) के तहत निजी संसाधन भी सामुदायिक संसाधनों में शामिल होते हैं?
यह भी पढ़ें : Viral News: ऑनलाइन साइट पर मिल रही लॉरेंस बिश्नोई के प्रिंट वाली टी-शर्ट, Meesho पर भड़का लोगों का गुस्सा
निजी संपत्ति के अधिकारों की रक्षा
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय संकेत करता है कि न्यायालय निजी संपत्ति के अधिकारों का सम्मान करता है. साथ में सुनिश्चित करना चाहता है कि राज्य की अधिग्रहण प्रक्रिया केवल तभी लागू हो जब संपत्ति वास्तव में सामुदायिक हित में हो. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि निजी संपत्तियों के अधिकारों की सुरक्षा की जाएगी और सरकारी अधिग्रहण की प्रक्रिया को उचित और पारदर्शी बनाया जाएगा. यह निर्णय भारत में संपत्ति के अधिकारों के लिए एक नई दिशा का संकेत है.
ख़बर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से