तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि ने धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलरिज्म) को एक विदेशी विचारधारा बताया है. उन्होंने कहा कि ये पूरा कान्सैप्ट यूरोप से उत्पन्न हुआ है. उन्होंने कहा कि यह विचार चर्च और राजा के बीच संघर्ष से उपजा था, जबकि भारत का आधार धर्म पर टिका हुआ है. राज्यपाल ने यह भी कहा कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता का उल्लेख पहले से नहीं था, बल्कि इसे आपातकाल के दौरान एक असुरक्षित प्रधानमंत्री द्वारा जोड़ा गया था.
भारत में धर्मनिरपेक्षता का कोई स्थान नहीं
राज्यपाल श्री रवि ने तमिलनाडू के कन्याकुमारी में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में धर्मनिरपेक्षता का कोई स्थान नहीं है. यह विचारधारा भारतीय संस्कृति और सभ्यता से मेल नहीं खाती है . उन्होंने कहा कि यूरोप में धर्मनिरपेक्षता का जन्म इसलिए हुआ क्योंकि वहां चर्च और राजा के बीच संघर्ष था, लेकिन भारत में ऐसा कोई संघर्ष नहीं है. उन्होंने बताया कि जब संविधान का मसौदा तैयार किया जा रहा था, तो किसी ने धर्मनिरपेक्षता पर चर्चा करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन संविधान सभा ने इसे यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि भारत में धर्म और समाज के बीच कोई संघर्ष नहीं है.
यूरोप तक सीमित है सेक्युलरिज्म
राज्यपाल रवि के अनुसार, भारत धर्म के आधार पर बना है. यहां धर्म और समाज के बीच कोई टकराव नहीं है. ऐसे में धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता ही क्या है? उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता केवल यूरोप के लिए है और उसे वहीं तक सीमित रहना चाहिए. उन्होंने भारतीय संदर्भ में इस विचार का कोई मतलब नहीं बताया है.
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इंदिरा गांधी पर साधा निशाना
राज्यपाल ने आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भी आलोचना की, जिन्होंने 1976 में संविधान की प्रस्तावना (preamble) में 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द को जोड़ा था. उन्होंने इसे एक असुरक्षित प्रधानमंत्री द्वारा कुछ वर्गों को खुश करने के लिए उठाया गया कदम बताया. राज्यपाल रवि का मानना है कि यह शब्द भारतीय संविधान में गलत रूप से शामिल किया गया था और इससे देश की भावनाओं के साथ धोखा हुआ था. गौरतलब है कि भारत में आए दिन सेक्युलरिज्म पर जोर-शोर से चर्चा होती रहती है. तमिलनाडू के राज्यपाल श्री रवि के इस बयान ने धर्मनिरपेक्षता पर एक नई बहस छेड़ दी है. उनका मानना है कि भारत की संस्कृति और सभ्यता के मूल में धर्म है और यहां धर्म के आधार पर समाज में कोई टकराव नहीं है.
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