चुनौती, चिंता या कुछ और, नितिन गडकरी क्यों BJP संसदीय बोर्ड से हुए बाहर?

Written By अभिषेक शुक्ल | Updated: Aug 19, 2022, 03:47 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी. (फाइल फोटो-PTI)

नरेंद्र मोदी कैबिनेट में अगर कोई सबसे भरोसेमंद चेहरा है तो वह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का है. बात देश में लगातार हो रहे रोड कंस्ट्रक्शन की हो या आधुनिक हो रही हाइवे प्रणाली की, नितिन गडकरी की कोशिशें सबसे सफल रही हैं. इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल्स के क्षेत्र में उन्होंने जो किया है, वह किसी भी क्रांति से कम नहीं है.

डीएनए हिंदी: नितिन गडकरी. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सबसे भरोसेमंद नेता. अगर उन्होंने (Nitin Gadkari) किसी नीति का ऐलान किया है तो वे उस दिशा में प्लान तैयार कर चुके हैं. अगर उन्हें बीजेपी का मैन विद विजन कहा जाए तो यह कहीं से भी गलत नहीं होगा. उनके प्लान को अगर सही तरीके से क्रियान्वित कर दिया जाए तो यह रोड ट्रांसपोर्ट में क्रांतिकारी बदलाव (Revolutionary Changes) सामने आ सकते हैं.

नरेंद्र मोदी कैबिनेट (Modi Cabinet) में अगर कोई एक शख्स ऐसा है जिसके कुछ कामों को विपक्ष भी मानता है, उनका नाम नितिन गडकरी है. अपने काम और बेहतरीन विजन के लिए उनकी तारीफ भी होती है. लोग उन्हें देखना-सुनना पसंद करते हैं. उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि लोग सोशल मीडिया से लेकर जनसभा और रैलियों तक लोक खिंचे-खिंचे चले आते हैं. इसी नितिन गडकरी को बीजेपी के संसदीय बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. अब वह नरेंद्र मोदी कैबिनेट में तो हैं लेकिन केंद्रीय संसदीय बोर्ड का हिस्सा नहीं.

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कौन-कौन हैं बीजेपी के संसदीय बोर्ड में शामिल?


बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और मुख्यालय प्रभारी अरुण सिंह की ओर से 17 अगस्त को एक अधिसूचना जारी हुई. अधिसूचना में लिखा गया है, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी की केंद्रीय संसदीय बोर्ड का गठन किया है, जिसके सदस्य निम्न प्रकार रहेंगे- जगत प्रकाश नड्डा, नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह, बीएस येदियुरप्पा, सर्वानंद सोनोवाल, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया और बीएल संतोष.

क्यों संसदीय बोर्ड से बाहर हुए नितिन गडकरी?

नरेंद्र मोदी कैबिनेट के सबसे प्रभावी चेहरे में शुमार नितिन गडकरी संसदीय बोर्ड से बाहर हुए हैं. कई राजनीतिज्ञों को यह बात अखरी है. बीजेपी समर्थक एक धड़े का कहना है कि नितिन गडकरी का कद नहीं घटाया गया है. वह बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं. पार्टी में उनकी मजबूत पकड़ है. केवल कुछ नेताओं के मन-मुटाव को कम करने के लिए सिर्फ पार्टी में नए बदलाव किए गए हैं. नितिन गडकरी के पास मालदार मंत्रालय है तो उनके कद कम होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

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नितिन गडकरी का संघ कनेक्शन बेहद मजबूत है. यह कहा जा सकता है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत के सबसे करीबी नेताओं में अगर कोई शुमार है तो वह नितिन गडकरी ही हैं. उनके पर करतने की कोशिश बीजेपी नहीं करेगी. संघ अगर बीजेपी से नाराज हुआ तो जमीनी स्तर पर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ जाएंगी. 

स्वतंत्र फैसले लेने में सक्षम, मोदी की मंजूरी का इंतजार नहीं!

बीजेपी से जुड़े सूत्र कहते हैं कि सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के किसी भी फैसले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हाथ बहुत ज्यादा नहीं होता है. वह परामर्श देते हैं लेकिन उसे मानना या न मानना पूरी तरह से नितिन गडकरी की इच्छा पर निर्भर करता है. बिना हिचके स्वतंत्र फैसले लेने वाले नितिन गडकरी की लगातार बढ़ रही लोकप्रियता उनके पर कुतरे जाने की एक वजह शुमार हो सकती है.

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नितिन गडकरी उन नेताओं में शुमार नहीं हैं जिन्हें हर बात के लिए मोदी से परमिशन लेनी पड़ती है. वह बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं. अक्सर ऐसा होता है कि संसदीय बोर्ड में पूर्व अध्यक्ष जरूर संसदीय बोर्ड में रहते हैं. हालांकि उनसे पहले भी कई पूर्व अध्यक्ष संसदीय बोर्ड से बाहर किए गए हैं.   

'गडकरी का मोटो- काम बोलता है'

नितिन गडकरी की छवि एक उदार नेता के तौर पर है. वह न तो केंद्र सरकार की तारीफ में बहुत कसीदे पढ़ते हैं न ही किसी भी तरह की सांप्रदायिक टिप्पणी करते हैं. नितिन गडकरी अपने भाषणों में कई बार साफ कर चुके हैं कि वह जब अपने पद और सम्मान से खुश हैं. उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है. 

'लगातार कुतरे जा रहे हैं गडकरी के पर'

2021 में भी नितिन गडकरी के पर कुतरे गए हैं. कैबिनेट के फेरबदल में उनका सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) उनसे छीन लिया गया था. महाराष्ट्र के एक दूसरे नेता नारायण राणे को यह जिम्मेदारी दे गई है. पहले नारायण राणे शिवसेना में थे, उन्होंने पाला बदलकर बीजेपी का हाथ थाम लिया.

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बीजेपी की कोर टीम को लगता है कि नितिन गडकरी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है. वह नरेंद्र मोदी के लिए भविष्य में चुनौती हो सकते हैं. ऐसे में उन्हें लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अगर बाहर की राह नहीं दिखाई गई तो पार्टी में ही घमासान मच सकती है. एक-एक करके उन्हें दरकिनार करने की कोशिशें की जा रही हैं. यही वजह है कि उनके राजनीतिक दबदबे को कम करने की कोशिश की जा रही है.

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