डीएनए हिंदी: देश की राष्ट्रपति ने राज्यपालों और उपराज्यपालों को लेकर कुछ अहम नियुक्तियां की हैं. महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी लंबे वक्त से इस्तीफा देना चाहते थे और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनका इस्तीफा स्वीकार किया. साथ ही इस दौरान कई राज्यों में राज्यपाल बदले गए हैं लेकिन सबसे अहम मामला आंध्र प्रदेश के राज्यपाल की नियुक्ति को लेकर हुआ हैं. केंद्र की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने आंध्र में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एस अब्दुल नजीर को राज्यपाल बनाया है. अब इस मामले को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की जा रही हैं.
दरअसल सोशल मीडिया पर ट्रेंड्स चल रहे हैं जिसमें यह आरोप लगाए गए हैं कि मोदी सरकार के हक में फैसला देने के चलते ही अब्दुल नजीर को राज्यपाल का अहम पद मिला है. लोग इस मुद्दे पर मोदी सरकार और अब्दुल नजीर दोनों को ही कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. विपक्षी दल भी इस मुद्दे आक्रामक हैं क्योंकि राम मंदिर पर फैसला देने वाले पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई को राज्यसभा का पद ऑफर हुआ था जिसके बाद बवाल मच गया था. इसे विपक्ष पक्ष में फैसले देने के ईनाम के तौर पर पेश कर रहा था.
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किन केसों से रहा अब्दुल नजीर का संबंध
अब सवाल उठता है कि आखिर वे कौन से केस हैं जिसमें अब्दुल नजीर शामिल थे. उन केसों की बात करें तो सबसे बड़ा मामला अयोध्या राम मंदिर मामला था. एस अब्दुल नजीर सुप्रीम कोर्ट पांच सदस्यीय बेंच का हिस्सा रहे इकलौते अल्पसंख्यक समुदाय के जज थे. इसके अलावा तीन तलाक मुद्दे पर कट्टरपंथियों के खिलाफ फैसला देने वाले जजों में भी अब्दुल नजीर शामिल थे. हाल ही में जो नोटबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था, उस बेंच में भी एस अब्दुल नजीर शामिल थे.
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विदाई के समय कही थी बड़ी बात
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट जज पद से रिटायर हुए अब्दुल नजीर ने विदाई भाषण में दिल छूने वाली बात कही थी. उन्होंने कहा था कि 2019 में दिए ऐतिहासिक फैसले में अगर वो पीठ के अन्य सदस्यों से अलग फैसला सुनाते तो शायद अपने समुदाय में हीरो बन जाते लेकिन, मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि उस वक्त मेरे लिए देश सर्वोपरि था. जज नजीर का यह बयान उस वक्त काफी चर्चा में भी रहा.
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