डीएनए हिंदीः उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के हाथ से सत्ता छीन जिस तरह एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री बने हैं उससे सभी हैरान हैं. एक साथ इतने विधायकों को अपने साथ ले जाना आसान नहीं होता है. एकनाथ शिंदे विधानसभा में अपना बहुमत भी साबित कर चुके हैं. अब अगली लड़ाई पार्टी के चुनाव चिन्ह पर दावे को लेकर है. उद्धव ठाकरे गुट इस मामले को लेकर पहले ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. कानूनी दांवपेच के अलावा अभी यह मामला कई पहलुओं से होकर गुजरेगा. इसमें किसी भी गुट को कम नहीं आंका जा सकता है. हालांकि सवाल अभी भी वहीं बना हुआ है कि आखिर एकनाथ शिंदे शिवसेना की कमान कैसे अपने हाथों में ले पाएंगे?
पार्टी सिंबल को लेकर होगी जंग
एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना के 55 विधायकों में से 40 का समर्थन मिल चुका है. उसके हौंसले काफी बुलंद हैं. इसी को लेकर आगे की लड़ाई अब पार्टी के सिंबल को लेकर होगी. विधानसभा में विश्वास मत के दौरान विधायकों की संख्या के आधार पर विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने एकनाथ शिंदे को शिवसेना विधायक दल का नेता माना है. इसी आधार पर शिवसेना में व्हिप का पद भी शिंदे गुट के बाद है. ऐसे में कम से कम विधानसभा में तो शिंदे गुट को किसी तरह की मुश्किल फिलहाल दिखती नजर नहीं आ रही है.
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सुप्रीम कोर्ट में लंबित में मामला
शिंदे गुट का मामला पहले ही सुप्रीम कोर्ट में हैं. हाल ही में स्पीकर के फैसले को लेकर उद्धव गुट दोबारा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. इस मामले में 11 जुलाई को सुनवाई होनी है. इतना तो साफ हो गया है कि दोनों ही गुट इस मामलों को कानूनी तौर पर लड़ने का मन बना चुके हैं. दोनों गुट के अपने-अपने दावे भी हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के अलावा इस मामले में चुनाव आयोग का भी अहम रोल रहेगा. पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर फैसला बिना चुनाव आयोग के हस्तक्षेप के नहीं किया जा सकेगा.
राह में क्या हैं मुश्किलें
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात उस पार्टी के संविधान को लेकर है. पार्टी का संविधान भी काफी स्थिति स्पष्ट कर देता है. एकनाथ शिंदे को भले ही पार्टी के विधायकों का समर्थन मिल चुका हो लेकिन उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कितने लोग उनके साथ हैं यह भी महत्वपूर्ण है. चूंकि शिवसेना का अपना संविधान है और उसकी एक कॉपी चुनाव आयोग के पास भी है. उसे पार्टी को लेकर क्या स्थिति तय है उसे भी समझना होगा. किसी राजनीतिक पार्टी के विवाद की स्थिति में चुनाव आयोग सबसे पहले यह देखता है कि पार्टी के संगठन और उसके विधायी आधार पर विधायक-सांसद सदस्य किस गुट के साथ कितने हैं. राजनीतिक दल की शीर्ष समितियां और निर्णय लेने वाली इकाई की भूमिका काफी अहम होती है. फिलहाल सिर्फ विधायकों की संख्या के आधार पर शिंदे गुट शिवसेना के सिंबल पर अपना दावा नहीं कर सकता है.
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राष्ट्रीय कार्यकारिणी की होगी महत्वपूर्ण भूमिका
एकनाथ शिंदे को भले ही विधायकों का समर्थन मिल चुका हो लेकिन शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का रोल इस वक्त सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है. बता दें कि शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आदित्य ठाकरे, मनोहर जोशी, लीलाधर डाके, दिवाकर रावते, सुधीर जोशी संजय राव, सुभाष देसाई, रामदास कदम और गजानन कीर्तिकर के साथ आनंद गीते, आनंदराव अडसूल और आनंद राव समेत एकनाथ शिंदे शामिल हैं. फिलहाल इनमें से सभी लोग उद्धव गुट के ही साथ हैं. साल 2018 में शिवसेना की प्रतिनिधि सभा में 282 लोग शामिल थे. इन सभी लोगों ने मिलकर ही उद्धव ठाकरे को शिवसेना का अध्यक्ष चुना था. ऐसे में शिवसेना की वर्तमान राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति अगले साल तक बरकरार रहेगी.
उद्धव ठाकरे की अब होनी है असल परीक्षा
उद्धव ठाकरे के खेमे में एक तिहाई से अधिक विधायकों के चले जाने के बाद उनके सामने असल परीक्षा अब शुरू हुई है. अगर उन्हें पार्टी का चुनाव चिन्ह अपने पास बनाए रखना है तो उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी से लेकर सांसद और सभी पदाधिकारियों को एकजुट रखना होगा. पार्टी के चुनाव चिन्ह पर जब दावे की बात आएगी तो इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों से लेकर पार्टी की प्रतिनिधि सभा और उनके अपने संविधान के अनुरूप तय की गई व्याख्या के आधार पर ही यह सब तय होता है. ऐसे में दावा करने वाले गुट को पार्टी के सभी पदाधिकारियों, विधायकों और संसद सदस्यों से बहुमत का समर्थन साबित करना होगा ताकि चुनाव चिन्ह आवंटित किया जा सके.
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