डीएनए हिंदी: जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राजनीति और रोचक होती जा रही है. सबसे ज्यादा हलचल महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश में जारी है. एक तरफ विपक्षी एकता के लिए दर्जनों पार्टियों की मीटिंग हो रही है. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नए-पुराने साथियों को जोड़ने और विपक्ष को तोड़ने में जान झोंक रही है. इसका फायदा भी उसे मिला है क्योंकि महाराष्ट्र में अजित पवार, बिहार में जीतनराम मांझी और उत्तर प्रदेश में कुछ नेता उसके साथ आ रहे हैं. इन तीनों राज्यों को मिलाकर देखें तो लोकसभा की 168 सीटें बनती हैं. 2019 में बीजेपी और एनडीए ने इन राज्यों में 95 प्रतिशत सीटें जीती थीं ऐसे में बीजेपी भी पूरा जोर लगा रही है कि विपक्ष की कोशिश कामयाब न हो और वह खुद को मजबूत बनाए रखे.
विपक्षी एकता का सबसे बड़ा फॉर्मूला यह है कि लगभग 400 सीटों पर बीजेपी के सामने विपक्ष का एक ही उम्मीदवार हो. बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में ऐसा होने पर बीजेपी को कड़ी चुनौती भी मिल सकती है. यही वजह है कि विपक्षियों को एक होता देख बीजेपी भी सक्रिय हो गई है. बीजेपी ने अभी से लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं. इसी के तहत सीटों की संख्या, जातिगत समीकरण और छोटे दलों की अहमियत को देखते हुए उनसे संपर्क साधा जा रहा है. बीजेपी की इस कवायद का फल भी मिलने लगा है और कई पार्टियां फिर से उसके साथ आने लगी हैं.
NDA के लिए महाराष्ट्र है अहम
महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं. बीते पांच सालों में सबसे ज्यादा उठापटक महाराष्ट्र में ही हुई है. 2019 का लोकसभा चुनाव असली शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर लड़ा था. एनसीपी और कांग्रेस ने भी गठबंधन किया था. इसमें से बीजेपी को 23 और शिवसेना को 18 सीटें मिली थी. एनसीपी को 4, कांग्रेस को एक और AIMIM को भी एक-एक सीट पर जीत मिली थी. एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार को जीत हासिल हुई थी. बाद में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने महा विकास अघाड़ी बनाई और ऐसा लगने लगा कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी का सफाया हो जाएगा.
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बीच में ही एकनाथ शिंदे की बगावत हुई और तस्वीर एक बार फिर पलटी. हालांकि, इसके बावजूद अघाड़ी मजबूत दिख रही थी. फिर बीजेपी ने अजित पवार को अपने पाले में करके बड़ी चाल चली. मौजूदा समय में शिवसेना (उद्धव बाला साहब ठाकरे) के पास लोकसभा के सिर्फ 6 सांसद बचे हैं. महाराष्ट्र में एनडीए के पास मौजूदा समय में लगभग 35-36 सांसद हैं. बीजेपी की कोशिश है कि वह एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के अलावा अन्य छोटे दलों को मिलाकर चुनाव लड़े और लोकसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी को चुनौती देते हुए ज्यादा से ज्यादा सीटें जीते.
बिहार ने बढ़ाई बीजेपी की चिंता
बिहार में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी, जेडीयू, लोक जनशक्ति पार्टी ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था. 40 में से बीजेपी को 17, जेडीयू को 16 और एलजेपी को 6 यानी कुल 39 सीटों पर जीत मिली. लेफ्ट, आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन के बावजूद विपक्ष सिर्फ एक सी जीत पाया. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी और जेडीयू ने साथ ही चुनाव लड़ा और सरकार बना ली. बीच में ही नीतीश कुमार ने फिर से पलटी मार दी और बीजेपी एक बार फिर से अकेली पड़ गई. आगे चलकर एलजेपी में भी फूट हो गई और बीजेपी ने चिराग पासवान को अकेला छोड़कर उनके चाचा पशुपति पारस को मंत्री बना दिया.
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लालू यादव और नीतीश कुमार के साथ आने से बीजेपी की चिंताएं बढ़ गई हैं. लालू, नीतीश और कांग्रेस का यह गठबंधन बीजेपी पर भारी पड़ सकता है. ऐसे में बीजेपी ने फिर से चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी को अपने साथ लाने की तैयारी शुरू कर दी है. मांझी एनडीए में शामिल हो चुके हैं, चिराग पासवान को एनडीए की बैठक में शामिल होने का न्योता दिया गया है और मुकेश सहनी से भी बात चल रही है. चर्चाएं तेज हैं कि बीजेपी हर हाल में जेडीयू को तोड़ने की कोशिश कर रही है ताकि लोकसभा चुनाव से पहले बिहार की तस्वीर बदली जा सके और 40 सीटों वाले राज्य में उसे ज्यादा नुकसान न हो.
यूपी जीतकर ही जीतेंगे लोकसभा चुनाव
2014 और 2019 में बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव में जीत का रास्ता उत्तर प्रदेश ने बनाया. 2014 में एनडीए को यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में भी उसे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ और वह 80 में से 64 सीटें जीत गई. 2024 में भी बीजेपी को अगर फिर से सरकार बनानी है तो उसे उत्तर प्रदेश में जीतना ही होगा. यही वजह है कि उसने विपक्ष में सेंध लगानी शुरू कर दी है. यूपी में एनडीए के साथ अपना दल (एस) और निषाद पार्टी पहले से ही है. अब ओम प्रकाश राजभर की एसबीएसपी को भी साथ लाने की तैयारी चल रही है. कहा जा रहा है कि सीटों के बंटवारा ही बाकी है.
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इतना ही नहीं, हाल ही में पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान अपनी विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं. चर्चा है कि वह भी बीजेपी में शामिल होंगे. दूसरी तरफ, यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी लगातार कोशिश कर रही है कि जयंत चौधरी को भी साधा जाए और विपक्षी गठबंधन को झटका दिया जाए. वहीं, अखिलेश यादव और बसपा के साथ आने की संभावना कम ही है. अखिलेश अब कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर भी सहज नहीं हैं और गठबंधन होता भी है तो वह बहुत कम सीटें कांग्रेस को देने को तैयार हैं, ऐसे में विपक्ष की तैयारियां कमजोर पड़ती दिख रही हैं.
कुल मिलाकर बीजेपी वह हर संभव कोशिश कर रही है कि उन राज्यों में वह खुद को मजबूत रखे जहां उसे पिछले चुनावों में अच्छी सफलता मिली है. विपक्ष भी ठीक यही कोशिश कर रहा है कि बीजेपी को बिहार, यूपी, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बड़ा नुकसान पहुंचाया जाए जिससे वह बहुमत से दूर रह जाए. इसी क्रम में विपक्ष की अगली मीटिंग 17 और 18 जुलाई को बेंगलुरु में होने वाली है.
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