Uddhav Thackeray ने क्यों किया द्रौपदी मुर्मू का समर्थन? सांसदों का दबाव या कोई और मजबूरी

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jul 13, 2022, 08:45 AM IST

शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे. (फाइल फोटो-PTI)

Shivsena supports Draupadi Murmu: महाराष्ट्र के सियासी  जानकारों का मानना है कि उद्धव ठाकरे ने यूं ही द्रौपदी मुर्मू का समर्थन नहीं कर दिया है. पार्टी में मचे संग्राम को देखते हुए उन्होंने यह फैसला किया है.

डीएनए हिंदी: शिवसेना में मचे 'संग्राम' के बीच पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने राष्ट्रपति चुनाव में NDA की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन करने का फैसला किया है. उद्धव के यह फैसला UPA के बड़ा झटका माना जा रहा है. द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा, "मैं अपना रुख स्पष्ट कर रहा हूं. मेरी पार्टी के आदिवासी नेताओं ने मुझसे कहा कि यह पहली बार है कि किसी आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनने का मौका मिल रहा है. उनके विचारों का सम्मान करते हुए हमने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का निर्णय किया है." उन्होंने आगे कहा, "दरअसल, वर्तमान राजनीतिक माहौल को देखते हुए, मुझे उनका समर्थन नहीं करना चाहिए था क्योंकि वह भाजपा की उम्मीदवार हैं. लेकिन हम संकीर्ण मानसिकता वाले नहीं हैं."

सियासी जानकारों की अलग है राय
महाराष्ट्र के सियासी  जानकारों का मानना है कि उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने यूं ही द्रौपदी मुर्मू का समर्थन नहीं कर दिया है. पार्टी में मचे संग्राम को देखते हुए उन्होंने यह फैसला किया है. शिवसेना के ज्यादातर विधायक एकनाथ शिंदे के गुट में शामिल हो गए हैं, ऐसे में वो किसी भी तरह से सांसदों को एकजुट रखना चाहते हैं.उनकी पार्टी के सांसद पहले ही उनसे द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का निवेदन भी कर चुके हैं, ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान सांसदों में दो फाड़ निश्चित ही उनकी स्थिति और ज्यादा कमजोर करते.

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जानकारों का यह भी मानना है कि उद्धव ठाकरे के इस फैसले के पीछे एक बड़ा संदेश छिपा है. यह संदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने और भारतीय जनता पार्टी के साथ रिश्ते सुधारने से जुड़ा है. राष्ट्रपति पद चुनाव में द्रौपदी मुर्मू का समर्थन कर उद्धव ठाकरे ने यह जताने की कोशिश भी की है कि शिवसेना-भाजपा संबंधों पर अभी भी काम किया जा सकता है.

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क्या कहती है भाजपा?
भाजपा की तरफ से उद्धव ठाकरे के इस फैसले का स्वागत किया गया है.  महाराष्ट्र भाजपा के एक नेता ने कहा कि राजनीति में कोई भी हमेशा मित्र या शत्रु नहीं होता. केंद्रीय नेतृत्व भी उद्धव ठाकरे परिवार से संबंध खत्म नहीं करना चाहेगा. भाजपा से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि पार्टी की बैठकों में केंद्रीय और राज्य के वरिष्ठ नेताओं की तरफ से यह पूरी तरह से स्पष्ट किया गया है कि कसी को भी उद्धव ठाकरे और उनके परिवार पर हमला नहीं बोलना है. इसी वजह से उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे का नाम उन विधायकों की लिस्ट में शामिल नहीं था, जिनके निलंबन की मांग की गई है. भाजपा के एक राष्ट्रीय महासचिव ने कहा कि यदि शिवसेना शिंदे के नेतृत्व वाले विद्रोहियों को गले लगाने और भाजपा के साथ गठबंधन करने को तैयार है, तो केंद्रीय नेतृत्व उनकी सहायता करेगा. इसके लिए पीएम मोदी और उद्धव ठाकरे के बीच में सिर्फ एक फोन कॉल या मीटिंग की जरूरत है.

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शिवसेना सांसद भी चाहते हैं पहले जैसे संबंध
उद्धव के इस फैसले के बीच खबर यह भी है कि शिवसेना के ज्यादातर सांसद चाहते हैं कि उनकी पार्टी और भाजपा के बीच पहले जैसे संबंध हों. शिवसेना सांसद हेमंत गोडसे ने कहा कि पार्टी सांसदों ने गठबंधन पर जोर देते हुए उद्धव ठाकरे को सुझाया कि भाजपा ही शिवसेना की ‘स्वाभाविक सहयोगी’ है और महा विकास आघाड़ी (MVA) एक अस्वाभाविक गठबंधन है. शिवसेना सांसदों ने सोमवार को मुंबई में उद्धव ठाकरे के निजी निवास पर उनके साथ बैठक में यह विषय उठाया.

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क्यों भाजपा से पहले जैसे संबंध चाहते हैं शिवसेना नेता?
हेमंत गोडसे ने कहा कि जमीनी स्तर पर शिवसेना और NCP के बीच हमेशा लड़ाई रही है. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि वह पिछले तीन लोकसभा चुनावों में भुजबल परिवार के खिलाफ लड़े हैं. वह 2009 में NCP नेता छगन भुजबल के भतीजे समीर भुजबल के खिलाफ लड़े थे. 2014 में उन्होंने छगन भुजबल के खिलाफ और 2019 में एक बार फिर समीर के खिलाफ चुनाव लड़ा. नवंबर 2019 में MVA सरकार बनने के बाद छगन भुजबल नासिक के प्रभारी मंत्री बनाए गए थे. उन्होंने कहा कि दशकों पुरानी प्रतिद्वंद्विता पांच साल में खत्म नहीं हो जाती.

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भाजपा के साथ गठबंधन पर जोर देते हुए उन्होंने नासिक का भी उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि नासिक लोकसभा में छह विधानसभा सीटे हैं. इनमें से नासिक शहर की तीन सीटों पर भाजपा का कब्जा है. बाकी तीन सीटों पर NCP और कांग्रेस का कब्जा है जहां शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार हार गए थे. उन्होंने कहा, "अगर हम MVA गठबंधन में रहते हैं तो हमारे शिवसेना उम्मीदवारों का क्या होगा? यह सबसे बड़ा सवाल उठेगा. इसलिए भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर या अगर एकनाथ शिंदे पार्टी में वापस आना चाहते हैं तो हमने (ठाकरे से) अनुरोध किया है कि उन्हें पार्टी में वापस ले लें."

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