डीएनए हिंदी: महिला आरक्षण बिल को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में इसको मजूरी भी दे दी गई है. बीजेपी नेताओं के बधाई भरे ट्वीट के बावजूद अभी तक इसकी औपचारिक पुष्टि सरकार की ओर से नहीं की गई है. केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने इस बारे में एक ट्वीट किया था लेकिन कुछ ही देर में उन्होंने अपना वह ट्वीट डिलीट कर दिया. इस बीच महिला आरक्षण बिल को लेकर कांग्रेस पार्टी भी अपनी पीठ थपथपाने लगी है और उसने इसे राजीव गांधी और सोनिया गांधी की पहल बता दिया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, संभावित महिला आरक्षण बिल के तहत लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जा सकती हैं. 33 फीसदी के भीतर एससी-एसटी और अन्य समुदायों की महिलाओं को भी आरण दिया जाएगा. स्थानीय निकायों के चुनावों के तहत रोटेशन सिस्टम के तहत हर चुनाव में आरक्षित सीटें बदली जा सकती हैं. बता दें कि कांग्रेस भी ऐसे बिल के समर्थन में है. दूसरी तरफ तेलंगाना की सत्ता पर काबिज भारतीय राष्ट्र समिति (बीआरएस) भी लगातार इसकी मांग कर रही है.
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4 बार पेश हो चुका है महिला आरक्षण बिल
महिलाओं को आरक्षण देने का मुद्दा नया नहीं है. पहले भी कई बार कोशिशें हुई हैं लेकिन इन्हें अंजाम नहीं दिया जा सका है. आखिरी बार साल 2010 में यूपीए 2 की सरकार के दौरान महिला आरक्षण बिल पर चर्चा हुई थी लेकिन सत्ता में शामिल कई पार्टियों के ही विरोध के चलते इसे मंजूरी नहीं मिल सकी थी. राज्यसभा में पास होने के बाद यह बिल लोकसभा में पास नहीं हो सका था.
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सबसे पहले साल 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार में महिला आरक्षण बिल संसद में रखा गया, देवगौड़ा को काफी विरोध भी झेलना पड़ा और बिल पास नहीं हो पाया. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने साल 1998, 1999, 2002 और 2003 में महिला आरक्षण बिल पेश किया. विपक्षी कांग्रेस और लेफ्ट के समर्थन के बावजूद यह बिल पास नहीं हो सका. साल 2004, 2009 और 2010 में कई बार कोशिशें हुईं और बिल राज्यसभा से पास भी हुआ लेकिन यह लोकसभा से कभी पास नहीं हो पाया.
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