डीएनए हिंदी: भारत की जनसंख्या बहुत तेजी के साथ बढ़ रही है. कहा जा रहा है कि इस मामले में साल 2023 में भारत एक नया कीर्तिमान बना सकता है. UN Population के अनुमान के अनुसार, अगले साल 2023 में भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा. देश के संसाधनों पर जनसंख्या के दबाव पर निबंध लिखते-पढ़ते हम सभी बड़े हुए हैं. लेकिन इसका हल निकालने में भारत पीछे क्यों रहा? आइए विश्व जनसंख्या दिवस पर ये जानने की कोशिश करते हैं कि देश की आबादी का हल जनसंख्या पर नीति बनाने से होगा या नहीं.
70 सालों में दुनिया की आबादी हुई तीन गुना
पिछले 70 सालों में दुनिया की आबादी तीन गुना होकर 780 करोड़ के पार हो चुकी है. UN Population के अनुमान के अनुसार, 35 साल के बाद साल 2057 में दुनिया में 1000 करोड़ लोग रह रहे होगें. भारी जनसंख्या का दुनिया भर के क्षय और अक्षय दोनों संसाधनों पर दबाव और बढ़ता जाएगा. संसाधनों पर दबाव का परिणाम हमें पर्यावरण में आ रहे बदलावों से देख ही रहे हैं.
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साल 2027 में चीन को पार कर जाएगा भारत
UN Population के अनुमान के अनुसार, साल 2027 में जनसंख्या के मामले में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा. 1960 में चीन की आबादी 55 करोड़ थी जबकि भारत की आबादी 45 करोड़ थी. साल 1979 में चीन ने एक बच्चे की जनसंख्या नीति अपनाई थी जिसके बाद से उसकी आबादी वृद्धि कम होती गई. अनुमान दर्शाते है कि साल 2027 के बाद चीन की आबादी कम होना शुरू जाएगी. वहीं भारत को मौजूदा दर से अपनी आबादी में स्थिरता लाने में अभी करीब 40 साल और लगेंगे यानी भारत को अपनी आबादी स्थिर करने में के लिए साल 2061 का इंतजार करना होगा. उस समय तक भारत की आबादी 165 करोड़ हो चुकी होगी.
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Total Fertility Rate (TFR) हुआ 2.1
इसी साल जारी हुए NFHS-5 के आकड़ों के अनुसार, भारत ने 2.1 की TFR (Total Fertility Rate) कोप्राप्त कर लिया है. 2.1 फर्टिलिटी रेट का मतलब है कि एक महिला औसतन 2.1 बच्चे पैदा कर रही है. इस Total Fertility Rate को Replacement-level fertility भी कहा जाता है. अगर कोई भी देश या राज्य 2.1 या कम की TFR को लम्बे समय के लिए बनाए रखता है. तो माना जाता है कि वहा की जनसंख्या अब स्थिर हो गई है. समय समय पर होने वाले NFHS( National Family Health Survey) के अनुसार साल 2003-05 में भारत की TFR 2.68 थी. 10 साल बाद 2013-15 तक आते आते ये दर 2.18 पर पहुंच गई थी. वहीं हाल ही जारी हुई सर्वे में भारत की TFR 1.99 पहुंच गई है.
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क्या देश को चाहिए जनसंख्या नीति?
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जनसंख्या नीति पर पिछले कई दशकों से बहस चल रही है. चीन ने कैसे जनसंख्या नीति अपनाकर देश की आबादी को अनियंत्रित तरीके से बढ़ने से रोक दिया. भारत में इस नीति का समर्थन करने वाला एक बड़ा वर्ग है. इस नीति को कई राज्यों की डेमोग्राफी में हो रहे बदलावों को रोकने का एक जरिया भी बताया जाता रहा है. इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित भी है. NFHS-5 के सर्वे के अनुसार देश के मुसलमानों की TFR 2.38 है, जो कि बड़ी चिंता का विषय है. वहीं देश के किसी अन्य धार्मिक समुदाय का TFR देश की औसत से ज्यादा नहीं है.
जनसंख्या नीति या स्वास्थ्य नीति?
चीन के अनुभवों का हवाला देकर बार-बार जनसंख्या नीति अपनाने के लिए आग्रह किया जाता है. देश के दक्षिण भारत और अन्य हेल्थ मानकों पर बेहतर कई राज्यों में मुस्लिम की आबादी की वृद्धि दर, बिहार और उत्तर प्रदेश के हिंदुओं से बेहतर है. उदाहरण के लिए बिहार में हिंदुओं का TFR देश के मुसलमानों के TFR की औसत से ज्यादा है. देश के यूपी, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश और झारखंड राज्यों की आबादी देश की कुल आबादी का 40 प्रतिशत से ज्यादा है. ऐसे में इन राज्यों में TFR ज्यादा होने के कारण भारत की आबादी की वृद्धि दर में अपेक्षित कमी नहीं आ पाई है. स्वास्थ्य और अन्य मानव विकास मानकों पर ये राज्य, देश में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शामिल हैं. हालांकि राज्यवार आंकड़े देखने पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है. लगभग देश के हर राज्य में मुसलमानों की आबादी की वृद्धि दर बाकी हिंदुओं से ज्यादा है. ऐसे में ऐसे में सोचने की जरूरत है कि देश को जनसंख्या नीति की आवश्यकता है या स्वास्थ्य नीति की?
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