कल चढ़ाया जाएगा भगवान शिव को जल, देखिए Kanwar Yatra की मनमोहक तस्वीरें

आज सावन का दूसरा सोमवार है. हजारों-लाखों की संख्या में शिव भक्त गंगा नदी (Ganga River) से पवित्र जल भरकर शिव मंदिर पर चढ़ाने के लिए पहुंच रहे हैं. इस साल कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) की शुरुआत 14 जुलाई से हुई, 26 जुलाई को मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाएगा. कांवड़ियों की सुरक्षा को लेकर जिला पुलिस की तरफ से पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. करीब 200 पुलिस कर्मचारी दिन और रात को सड़कों पर गश्त कर रहे हैं. इसके अलावा डायल 112 की टीमें भी कांवड़ियों को लेकर सक्रिय हैं.

कांवड़ियों के लिए शिविर लगा रहे लोगों को भी सड़क के कुछ दूरी पर टेंट लगाने के निर्देश दिए गए हैं. शहर के सभी मुख्य चौक-चौराहों पर पुलिस कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है जो कांवड़ियों को रास्ता बताने में सहायता कर रहे हैं. सामाजिक संस्थाएं भी जगह-जगह कांवड़ियों की सेवा में शिविर लगाए हुए हैं. वहीं, सड़कों पर केसरिया कपड़ों में कांवड़ियों के जत्थे दूर-दूर तक नजर आ रहे हैं.  गर्मी, बारिश और सड़क पर बिछे पत्थरों भी उनकी आस्था में आड़े आते नजर नहीं आ रहे हैं. बता दें कि उनकी यह यात्रा जितनी मुश्किल है, इसके नियम भी उतने ही सख्त हैं. आइए कांवड़ यात्रा से जुड़े नियमों के बारे में विस्तार से जानते हैं.
 

कितनी तरह की होती है कांवड़ यात्रा?

श्रावण में शिव भक्त कांवड़ लेकर हरिद्वार से गंगाजल लेने जाते हैं और फिर उस जल से भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं. भगवान शिव की साधना से जुड़ी कांवड़ यात्रा में समय के साथ कई बदलाव आए हैं. आज के समय में पांच तरह की कांवड़ यात्रा प्रचलन में है. इनमें सामान्य कांवड़, खड़ी कांवड़, डाक कांवड़, दांडी कांवड़, और झांकी वाली कांवड़ शामिल है.
 

सामान्य कांवड़

सामान्य कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िए जहां चाहे रुककर आराम कर सकते हैं. उनके रुकने के लिए कई जगह पंडाल लगे होते हैं. इन पंडालों में कुछ देर रुककर वे अपनी यात्रा फिर शुरू कर देते हैं.
 

खड़ी कांवड़

खड़ी कांवड़ को सबसे कठिन कांवड़ यात्रा में से एक माना जाता है. इस यात्रा को करने के दौरान कांवड़िए अपनी कांवड को कहीं जमीन पर नहीं रख सकते. यात्रा के दौरान अगर किसी कांवड़िए को खाना या आराम करना होता है तो वह इसे किसी दूसरे कांवड़िए को थमा देता है या फिर किसी स्टैंड पर टांग देता है. 
 

डाक कांवड़

डाक कांवड़ को एक तय समय में लाया जाता है. यह अमूमन 24 घंटे में पूरी कर ली जाती है. कांवड़ लाने का संकल्प लेकर 10 या इससे ज्यादा युवाओं की एक टोली वाहनों में सवार होकर गंगा के घाट पर जाकर जल उठाती है.  इस टोली में शामिल एक या दो सदस्य लगातार जल हाथ में लेकर दौड़ते रहते हैं. जब वो आते हैं तो हर कोई उनके लिए रास्ता बनाता है ताकि वे शिवलिंग तक बिना रुके चलते रहें.
 

दांडी कांवड़

दांडी कांवड़ में कांवड़िए नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं. इसके लिए वे रास्ते की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेटकर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं. बता दें कि यह यात्रा इतनी मुश्किल होती है कि इसमें महीने भर तक का समय लग जाता है.
 

झांकी वाली कांवड़

झांकी वाली कांवड़ में कांवड़िए किसी खुले वाहन में भगवान शिव का दरबार सजाकर गाते-बजाते हुए अपनी यात्रा को पूरी करते हैं.