सलाखों के पीछे पहुंचे Lalu Yadav, कभी जो थे किंग मेकर आज पार्टी और परिवार की चुनौतियों से घिरे
लालू यादव को आज सीबीआई कोर्ट ने डोरंडा ट्रेजरी केस में दोषी करार दिया है. चारा घोटाले के अलग-अलग मामलों में पहले ही वह दोषी करार दिए जा चुके हैं.
राजनीति में लालू यादव का सिक्का 2004 तक चला था. उसके बाद उनका ढलान शुरू हुआ था. जेेपी आंदोलन के सितारों में से एक लालू ने छात्र राजनीति से शुरुआत की थी. 1977 में वह पहली बार लोकसभा पहुंचे और उस वक्त उनकी उम्र महज 29 साल थी. 90 के दशक में वह बिहार की राजनीति में लगभग अजेय बन गए थे. 90 से 97 तक लगातार वह प्रदेश के सीएम रहे थे. 2004 के लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी ने बिहार में 24 सीटें जीतकर अपनी धमक दिखाई थी. 24 सीटों के समर्थन के बदले मनमोहन सिंह सरकार में वह रेल मंत्री भी बने थे. 2005 विधानसभा चुनाव में उन्हें राजनीतिक करियर में पहला बड़ा झटका मिला था. 2009 और 2014 लोकसभा के चुनावों में उनकी पार्टी कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर सकी और 2019 के लोकसभा चुनावों में तो 1 सीट भी नहीं जीत पाई थी.
लालू यादव अपने बड़े भाई के पास पटना पढ़ने के लिए आए थे. उन दिनों उनके भाई सरकारी नौकरी में थे और सर्वेंट क्वार्टर में रहा करते थे. लालू भी उनके साथ ही रहने लगे थे. उन्हें करीब से जानने वालों का कहना है कि लालू कम उम्र से ही बेहद हाजिरजवाब और हिम्मती किस्म के थे. आपातकाल के दौरान वह जेपी आंदोलन में शामिल हुए थे और छात्र राजनीति का लोकप्रिय चेहरा भी बन गए थे.
संसद हो या कोई टीवी इंटरव्यू, खास भदेस शैली और चुटीले अंदाज की वजह से लालू बिहार और हिंदी पट्टी ही नहीं पूरे देश में लोकप्रिय थे. उनकी हाजिरजवाबी ऐसी रही है कि क्या पक्ष और क्या विपक्ष सब ठहाके लगाते दिखते थे. लालू संसद में जब बोलना शुरू करते थे तेज-तर्रार बहस और तीखे आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच उनकी लाजवाब शैली पर सांसद हंसते नजर आते थे.
लालू यादव इस वक्त पारिवारिक स्तर पर भी संघर्ष कर रहे हैं. स्वास्थ्य कारणों से वह बेल पर बाहर थे लेकिन आज दोषी करार दिए जाने के बाद फिर से उन्हें जेल जाना पड़ा है. इस वक्त आरजेडी प्रमुख अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं. लालू ही नहीं उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती भी आरोपों के घेरे में हैं. इसके अलावा, पार्टी में उनके दोनों बेटों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष और विवाद की खबरें आती रहती हैं. उनके पुराने सिपहसालार पार्टी छोड़ चुके हैं. 2020 विधानसभा चुनाव में भी कड़ी मेहनत के बाद भी आरजेडी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है.
लालू यादव इस वक्त कई मामलों में दोषी करार दे चुके हैं. डोरंडा ट्रेजरी केस में अब तक सजा का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन चारा घोटाले के 4 मामलों में वह 27 साल की सजा पहले ही पा चुके हैं. ऐसे में लालू आने वाले दिनों में शायद ही कोई चुनाव लड़ सकें. उन्हें बेल के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है. स्वास्थ्य कारणों से भी वह पहले की तरह सक्रिय नहीं रह सकते हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव को लोग उनका स्वाभाविक उत्तराधिकारी मान रहे हैं लेकिन लालू और आरजेडी की पुरानी धमक फिलहाल वापस लौटती नजर नहीं आ रही है.