कश्मीर पंडितों और स्थानीय नागरिकों ने इस मंदिर में रविवार को पूजा-अर्चना की. नवग्रह अष्टमंगलम पूजा में शामिल होने के लिए जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा भी पहुंचे. उन्होंने कहा कि यहां पर पूजा होना एक दिव्य अनुभव है.
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अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के कई मंदिरों के पुनरुत्थान और जीर्णोद्धार का मुद्दा तेजी पकड़ रहा है. सैकड़ों साल पहले तोड़ दिए गए इस मंदिर के नाम पर यहां खंडहर ही मौजूद है. इसके बावजूद लोगों ने कई साल बाद यहां पूजा करके इसके महत्व को उजागर करने की कोशिश की है.
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उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस मौके पर कहा, 'जम्म-कश्मीर विविध धार्मिक और सांस्कृतिक सभ्यताओं को संजाए हुए है और अपनी विरासत में समृद्धि लिए हुए है. हम जम्मू-कश्मीर की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक जगहों को शानदार बनाने के प्रयास में लगे हुए हैं. साथ ही केंद्र सरकार भी इन जगहों को विकसित करने और उनके सांस्कृतिक महत्व को सामने लाने के लिए प्रयासरत है.'
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इस मंदिर को 8वीं सदी के आसपास बनाया गया था. 15वीं सदी में कश्मीर के शासक सिकंदर शाह मीरी ने मंदिर को ध्वस्त करने की कई कोशिशें कीं, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. हालांकि, कई बार हमले होने की वजह से यह मंदिर जर्जर हो गया और अब इसके अवशेष ही बचे हैं. एएसआई की ओर से कुछ प्रयास भी किए गए, लेकिन मंदिर को फिर से स्थापित नहीं किया जा सका है.
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इस मंदिर को एक पठार के शिखर पर बनाया गया था. कहा जाता है कि यहां से पूरी कश्मीर घाटी दिखती थी. मंदिर को बनाने के लिए चूना पत्थर का इस्तेमाल किया गया था. वास्तविक स्थिति के अनुसार इसमें 84 खंबे थे और इसका चबूतरा 220 फीट लंबा और 142 फीट चौड़ा था. इस कश्मीरी वास्तु शैली का शानदार उदाहरण माना जाता था.