देश को आजाद हुए एक दशक हो गया था. भाषा के आधार पर राज्यों का फिर से गठन हुआ और इस दौरान देशवासियों ने कई आंदोलनों को भी देखा था.
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इसी दौरान प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को सबसे तीखा विरोध झेलना पड़ा था. इस प्रदर्शन में तत्कालीन बंबई (Mumbai) को महाराष्ट्र में शामिल करने या उससे अलग रखने को लेकर विरोध चल रहा था.
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इन विवादों के बीच साल 1957 में दूसरी बार देश में आम चुनाव कराए गए थे. सुकुमार सेन ही पहले और दूसरे आम चुनाव के दौरान चुनाव आयुक्त रहे.
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लोकतांत्रिक देशों की सूची में सम्मानजनक जगह पाने के लिए दूसरी बार निष्पक्ष चुनाव कराया जाना अहम चुनौती थी. ये चुनाव 1957 में हुए और इस बार यह प्रक्रिया करीब तीन हफ्ते चली थी.
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सुकुमार सेन ने पहले चुनाव में इस्तेमाल हुई 35 लाख मतपेटियों को सुरक्षित रख लिया था. इस वजह दूसरे चुनाव में केवल पांच लाख और मतपेटियों की ही जरूरत पड़ी.
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1957 में पहली बार बूथ कैप्चरिंग का मामला मामने आया था. सुकुमार सेन की सूझबूझ की वजह से दूसरे चुनाव में पहले चुनाव के मुकाबले 4.5 करोड़ रुपये की बचत हुईथी.
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पहले आम चुनाव में 17 करोड़ 32 लाख से ज्यादा लोगों ने वोट दिया था. इसकी तुलना में दूसरे आम चुनाव में यह संख्या बढ़कर 19 करोड़ 30 लाख के आसपास रही थी. 50 फीसदी वोटिंग हुई थी और कुल 197 टन कागज का इस्तेमाल हुआ.
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जब वोटों की गिनती के लिए Ballot Box खोले गए, तो इनमें मतपत्रों के अलावा भी कई चीजें बाहर आईं. कहीं उम्मीदवार के नाम पर गालियां लिखी हुई थी, तो कहीं से सिक्के भी निकले. कुछ लोगों ने तो अपने फेवरेट एक्टर की फोटो Ballot Box में डाल दी थी.
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1957 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस पार्टी भारी बहुमत से जीती और जवाहरलाल नेहरू देश के पीएम बने. 226 सीटों पर कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 195 ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के 371 सांसद लोकसभा पहुंचे थे.