लोकगीतों की 'देवी' थीं शारदा सिन्हा, जानें उनके संघर्ष के अनसुने किस्से, देखें PHOTOS

बिहार कोकिला शारदा सिन्हा लगातार वेंटिलेटर पर थीं. संगीत प्रेमी उनके हेल्थ को लेकर दिन-रात प्राथना कर रहे थे. छठ महापर्व का समय है लेकिन लोगों के बीच उनकी पसंदीदा लोकगायिका अब नहीं रही हैं. वो कैंसर से जूझ रही थी. उनका जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले में हुआ था.

आदित्य प्रकाश | Updated: Nov 10, 2024, 11:06 AM IST

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शारदा सिन्हा का जन्म जहां बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में हुआ, वहीं उनकी शादी बेगूसराय के सिहमा गांव में हुई थी. वहीं उनका ससुराल है. एक साधारण परिवार में पैदा हुईं शारदा सिन्हा किशोरावस्था में संगीत सीखने के लिए घंटों का सफर करती थीं. दिन-रात रियाज करती थीं. अपनी शादी के बाद भी उन्होंने हार नहीं माना. वो संगीत के क्षेत्र में महनत करती रहीं. उन दिनों एक साधारण परिवार की बहु का घर से बाहर निकलना बड़ी बात हुआ करती थी. 

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उन्होंने मैथिली लोकगीत से उन्होंने करियर की शुरुआत की थी. वो मुख्य रूप से भोजपुरी, मैथिली, अवधि, मगही और हिंदी की गायिका हैं. उनकी मधुर आवाज की वजह से उन्हें बिहार की कोयल कह कर भी संबोधित किया जाता है. यूपी हो या बिहार, उनके गानों के बगैर कोई शादी और त्योहार पूरा ही नहीं होता है. छठी मइया पर उनके गीत तो हमेशा के लिए अमर-अजर हो चुकी है.

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शारदा सिन्हा को लोक संगीत में उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिल चुका है. साल 1991 में उन्हें पद्म श्री और 2018 में तीसरे सर्वोच्च नागरिक पद्म भूषण दिया जा चुका है.

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छठ पूजा महोत्सव के समय उनके गाने आवोहवा में इस तरह से बजते हैं, जैसे उनकी ध्वनियों से पूरा माहौल पवित्रमय हो जाता है. मॉरिशस के पीएम जब एक बार के बिहार दौरे पर आए थे, तो शारदा सिन्हा की आवाज में गाने सुनकर वो आजीवन उनकी आवाज के मुरीद हो गए.
 

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शारदा सिन्हा ने बॉलीवुड में भी 'कहे तो से सजना' और 'तार बिजली' जैसे सुपरहिट गाने दिए. ये उनके संघर्षों की ही सफलता है कि आज पूरी दुनिया उनके सुरों की दिवानी है.