Akali Politics: पंजाब में हाशिए पर अकाली दलों की सियासत, विरोधियों को क्यों लगा रहे हैं गले?

रवींद्र सिंह रॉबिन | Updated:May 14, 2022, 07:28 AM IST

बादल परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है अकालियों की राजनीति. (फाइल फोटो)

पंजाब में अकाली दलों की राजनीति हाशिए पर चली गई है. पढ़ें रविंद्र सिंह रॉबिन का विश्लेषण.

डीएनए हिंदी: पंजाब (Punjab) की सियासत में शिरोमणि अकाली दल (SAD) अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.   खुद को बचाए रखने की कोशिश में अकाली दल का शीर्ष नेतृत्व अपने धुर विरोधियों से भी मुलाकात कर रहा है. यह लड़ाई सिर्फ प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली SAD (B) की ही नहीं है बल्कि सभी अकालियों की है.

सिर्फ सिखों की राजनीति करने का खामियाजा अब पार्टी भुगत रही है. सूबे की सत्ता से लगातार बाहर चल रही शिरोमणि अकाली दल के दिग्गज नेता भी अपनी विधानसभा सीट गंवा चुके हैं. सबसे पुराने क्षेत्रिय दलों में से एक अकाली दल आज को को प्रासंगिक बनाए रखने की लड़ाई लड़ रहा है.

बंदी सिंह की रिहाई को मुद्दा बना रहे अकाली

पंजाब के पॉलिटिकल इंडस्ट्री ऐसी हो गई है जहां सर्वाइवल सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. अब सियासी लड़ाई में बंदी सिंह (सिख कैदी) की रिहाई बड़ा मुद्दा बन गया है. कहा जा रहा है कि बंदी सिंह कौम की लड़ाई की वजह से जेल में बंद हैं. ऐसे में सभी सिख सांसद और विधायक उनकी रिहाई के लिए आवाज उठाएं. अलग-अलग राजनीतिक दल अपने विपक्षी दलों पर आरोप लगा रहे हैं कि वे बंदी सिंह की रिहाई के लिए कुछ नहीं कर सके.

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कितने धुर-विरोधी अकाली गुट आए हैं साथ?

अकाली दल अलग-अलग गुटों में बंटा हुआ है. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाला शिरोमणि अकाली दल (बी) परिवारवाद के आरोपों से जूझ रहा है. अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए बादल परिवार इस गुट को चला रहा है. इसके अलावा अकालियों के गुटों में शिरोमणि अकाली दल (डी), शिरोमणि अकाली दल (ए), जागो, शिरोमणि अकाली दल (डेमोक्रेटिक), एसएडी (पंथिक) और एसएडी (1920) जैसे दल भी शामिल हैं.

अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं अकाली

अब सभी राजनीतिक दल पंथ की लड़ाई लड़ रहे हैं. अकालियों का हर गुट अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. 11 मई को शिरोमणि अकाली दल (बादल) की अगुवाई में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की बैठक हुई. पंथक बैठक में बंदी सिंह की रिहाई के लिए सांझा संघर्ष शुरू करने का फैसला लिया गया. पंथक जत्थेबंदियों की यह बैठक श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों पर एसजीपीसी कमेटी दफ्तर स्थित तेजा सिंह समुंद्री हॉल में हुई.

क्या है अकाली दलों की राजनीति?

बैठक में बंदी सिंह की रिहाई के लिए मांग तेज की गई. दावा किया गया कि उन्होंने अपनी जेल की सजा पूरी कर ली है लेकिन फिर भी रिहा नहीं किया जा रहा है. उन्हों रिहा कराने के लिए सिख दल आगे आएं और आवाज उठाएं. वह दशकों से जेल में हैं.

बैठक में धुर-विरोधी गुट भी एक साथ थे. सुखबीर सिंह बादल, एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी, दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेटमेंट कमेटी के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका भी मौजूद रहे. जग आसरा गुरु ओट (JAGO) के अध्यक्ष मंजीत सिंह जीके भी बैठक में शामिल रहे. सबकी एक ही मांग थी कि अकालियों को सक्रिय किया जाए और बंदी सिंह की रिहाई की भूमिका तैयार की जाए. बंदी सिंह की रिहाई के जरिए सिख समुदाय में एक बार फिर पैठ बनाने की कोशिश अकाली गुट कर रहे हैं.

साथ आना मजबूरी है

अकाली दल के अलग-अलग गुटों ने पंथिक बैठक में सिख राजनीति को जारी रखने की प्रतिबद्धता दोहराई है. अभी धुर विरोधी दल एक होकर जोर आजमा रहे हैं कि कैसे आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) जैसे राजनीतिक दलों को मात देने के लिए अकाली ब्रांड का इस्तेमाल किया जाए.

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राजनीतिक विश्लेषक भी असमंजस में हैं कि एक-दूसरे के धुर विरोधी अकाली गुट कैसे एक साथ आ रहे हैं. बंद पर्दे के पीछे ऐसी कौन सी डील हुई है जो एसएडी (बी) से लेकर डी तक एक साथ आ गए हैं. 

क्या संगरूर का उपचुनाव बदलेगा सियासी समीकरण?

पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट पर उपचुनाव होने वाले हैं. भगवंत मान के इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हुई है. देखने वाली बात यह होती है कि अकाली दल अपने किस धड़े को इस लोकसभा सीट पर उतारता है. यहां से एसएडी (ए) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान भी चुनाव लड़ चुके हैं. 

अकालियों को क्यों सता रहा है डर?

राजनीति विश्लेषक मनोहर लाल शर्मा कहते हैं कि सिमरनजीत सिंह मान अकाली दल के संयुक्त उम्मीदवार हो सकते हैं. संगरूर लोकसभा सीट के लिए अकालियों ने मिलकर समर्थन दिया है. मनोहर लाल शर्मा पूर्व मुख्यंत्री हरचरन सिंह बरार के सलाहकार भी रह चुके हैं. अकाली दल को यह डर सता रहा है कि आम आदमी पार्टी के सिख नेता अकालियों की खाली जगह को तेजी से भर रहे हैं. अगल सारे अकाली गुट एक साथ आए तो पंजाब की सियासत भी बदल सकती है.

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