Akali Politics: क्या 'धर्म भरोसे' हो गई है अकालियों की सियासत, कैदियों की रिहाई को मुद्दा बना पाएगा बादल परिवार?

Written By रवींद्र सिंह रॉबिन | Updated: May 22, 2022, 12:03 PM IST

हाशिए पर जा रही है अकालियों की राजनीति.

राजनीतिक तौर पर हाशिए पर पहुंच चुका शिरोमणि अकाली दल पार्टी को संजीवनी देने की कोशिश कर रहा है लेकिन डगर बहुत कठिन है.

डीएनए हिंदी: पंजाब (Punjab) में आम आदमी पार्टी (AAP) का उदय अगर किसी राजनीतिक दल के लिए सबसे बुरा साबित हुआ है तो वह है शिरोमणि अकाली दल (SAD B). कभी पंजाब की सत्ता में काबिज रहने वाला अकाली दल हाशिए पर है. बादल परिवार के नेतृत्व वाला शिरोमणि अकाली दल यह संघर्ष कर रहा है कि कैसे पंजाब में एक बार फिर अपनी सियासी जड़ें मजबूत की जाएं.

पंथ आधारित देश की सबसे पुरानी पार्टियों में से एक अकाली दल के सामने कई चुनौतियां हैं. पंथिक राजनीति (Panthic Politics) भी अकालियों के अस्तित्व को नहीं बचा पा रहा है. पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में से अकाली दल महज 3 सीटों पर सिमट गई है. यह वही दल है जिसकी 2012 में सरकार थी. 2017 में कमजोर हुए और 2022 में खत्म होने की कगार पर पहुंच गए. 

शिअद के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और प्रकाश सिंह बादल भी चुनाव हार गए थे. कभी भारतीय जनता पार्टी के साथ मजबूत दोस्ती रखने वाला यह दल जबसे अलग राह पकड़ी है तबसे ही पार्टी के दुर्दिन चल रहे हैं. अब अकाली दल के नेता बंदी सिंह की रिहाई को मुद्दा बनाकर अपनी सियासत चमकाना चाहते हैं. हालांकि इसे वह राजनीतिक मुद्दा बना नहीं पा रहे हैं.



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पंथ निरपेक्ष पार्टियों का चमक रहा है भविष्य

सिख वोटरों की सहानुभूति अब अकालियों के लिए नहीं है. उनका रुझान पंथ निरपेक्ष आम आदमी पार्टी की ओर बढ़ता जा रहा है. अकाली तख्त और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी (SGPC) भी अकाली दल की राह आसान नहीं कर पा रहा है. दोनों संगठनों की ओर से कहा जा चुका है कि अकाली आपसी मतभेद भूलकर एकजुट हों और पंजाब में अकालियों के हक की आवाज बुलंद करें. एक मुद्दे के लिए लड़ें.

रंजिश भूलकर साथ आएंगे अकाली दल?

जो अकाली नेता पहले एक-दूसरे के खिलाफ जहर उगलते थे अब वे सबकुछ भूलकर एक-दूसरे का साथ दे रहे हैं. धार्मिक संगठनों का जोर है पंथ एकजुटता की ओर आगे आए जिससे अकालियों की राजनीतिक कमजोर न पड़े. राजनीतिक विश्लेषकों का साफ कहना है कि जब तक अलग-अलग अकाली गुट एकजुट नहीं होंगे, सूबे में सियासत संभलने वाली नहीं है.

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सभी अकाली दलों ने गुट बनाया है बंदी सिंह की रिहाई का मुद्दा केंद्र और राज्य सरकार के पास भेजी जाए. 16 मई को एसजीपीसी ने 9 सदस्यीय एक कमेटी बनाई है जिसमें शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल, शिअद (डी) अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना, शिअद (ए) अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान, दमदमी टकसाल प्रमुख बाबा हरनाम सिंह खालसा (संत समाज की ओर से), तरना दल के प्रमुख हरियाण वेलन बाबा निहाल सिंह (निहंग संगठनों की ओर से), दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीएमसी) के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका, डीएसजीएमसी के पूर्व अध्यक्ष मंजीत सिंह जीके और सिख उपदेशक बलजीत सिंह दादूवाल शामिल हैं.

'बादल का परिवारवाद अकालियों को नहीं आया रास'

19 मई को इस कमेटी में तख्त श्री हरमंदर जी पटना साहिब प्रबंधन समिति के अध्यक्ष अवतार सिंह हित और तख्त श्री अचलनगर हजूर साहिब प्रबंधन बोर्ड के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मिन्हास की ओर से परमजोत सिंह चहल समेत दो सदस्यों को जोड़ा गया.

समिति के गठन के तुरंत बाद इसके प्रमुख सदस्यों में से एक बलजीत सिंह दादूवाल ने सुखबीर सिंह बादल को शामिल करने पर आपत्ति जताई. यह आपत्ति इसलिए नहीं थी कि वह एक राजनेता थे बल्कि इसलिए कि उनकी सरकार पर ही बेअदबी के आरोप लग चुके हैं.

कैदियों के भरोसे सियासत चमकाएगा अकाली दल

पंजाब में कैदियों की रिहाई का मुद्दा बेहद भावुक कर देने वाला है. ज्यादातर कई सालों से जेल में बंद हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने का इंतजार कर रहे हैं. SGPC, अकाल तख्त और SAD ने इन सभी वर्षों में उनकी रिहाई को तय करने के लिए कुछ नहीं किया है लेकिन सियासत इन्हीं के सहारे चमकाने की कोशिश है.

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जाहिर है, सुखबीर बादल अब एक धार्मिक मुद्दे के जरिए सुर्खियों में आने की कोशिश कर रहे हैं. बादल परिवार यह भूल गया है कि उनके सत्ता से बेदखल होने की एक वजह धार्मिक सियासत ही थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन के बाद भी उन्हें महज 18 सीटें ही हासिल हुईं थीं. 

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