Allahabad High Court News: परिवारों में होने वाले विवाद में किसी भी व्यक्ति की संपत्ति पर पहला हक उसकी पत्नी का माना जाता है, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसकी नए सिरे से व्याख्या कर दी है. हाई कोर्ट ने कहा है कि कि यदि कोई पति अपनी पत्नी के नाम पर घर खरीदता है तो इस पर पत्नी का अकेले अधिकार नहीं होगा. यह घर पूरे परिवार की संपत्ति माना जाएगा, जिसका बंटवारा संयुक्त हिंदू परिवार के नियमों के तहत होगा. हालांकि हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यह फैसला उसी स्थिति में लागू होगा, जब पत्नी हाउसवाइफ हो और उसके पास अपना कोई आय का स्वतंत्र स्रोत नहीं है.
साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 होगी लागू
हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने यह फैसला संपत्ति विवाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान 15 फरवरी को दिया है. अब विस्तृत फैसला जारी किया गया है. फैसले में जस्टिस देशवाल ने कहा, हिंदू पति ने अपनी गृहिणी पत्नी के नाम संपत्ति खरीदी है तो कोर्ट उस पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 लागू मान सकती है, जिसके चलते यह संपत्ति अकेली पत्नी की ना होकर संपूर्ण परिवार की होगी. कोर्ट का मानना है कि अधिकतर पति सामान्य हालात में घर संभालने वाली पत्नी की आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं होने के बावजूद परिवार हित में उसके नाम पर संपत्ति खरीदते हैं. जस्टिस देशवाल ने कहा, पत्नी को यदि पूरी संपत्ति पर हक चाहिए तो उसे इसकी खरीद अपनी आय से करने की बात सिद्ध करनी होगी. यदि ऐसा नहीं होता है तो संपत्ति खरीद के लिए उपयोग रकम पति की आय का हिस्सा मानी जाएगी.
क्या है मामला, जिसमें दिया गया है ये फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट जिस मामले की सुनवाई कर रहा है, उसमें पुत्र ने दिवंगत पिता की संपत्ति में पुत्र ने सह स्वामित्व का दावा किया हुआ है. सौरभ गुप्ता नाम के याचिकाकर्ता ने अपनी मां के नाम पर मौजूद संपत्ति को अपने दिवंगत पिता द्वारा खरीदी हुई बताया है. इस आधार पर उसने खुद को संपत्ति में मां के साथ सह हिस्सेदार बताते हुए एक चौथाई भाग का मालिकाना हक मांगा है. सौरभ ने इस मामले में अपनी मांग को ही प्रतिवादी बनाया हुआ है.
मां का दावा- संपत्ति पति ने आर्थिक सुरक्षा के लिए उपहार में दी
मां ने जवाब में दावा किया है कि उसकी आय का कोई स्रोत नहीं होने के कारण पति ने उसकी आर्थिक सुरक्षा के लिए संपत्ति खरीदकर उपहार में दी है. सौरभ गुप्ता ने मां द्वारा संपत्ति तीसरे पक्ष को हस्तांतरित करने पर रोक लगाने की मांग अदालत से की थी. यह मां निचली अदालत ने ठुकरा दी थी, जिसके बाद उसने हाई कोर्ट से यह मांग की थी. इसी पर सुनवाई चल रही है.
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