डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव बेहद नजदीक हैं. चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां गठबंधन का दांव खेल रही हैं. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार को चुनौती देने के लिए राजनीतिक पार्टियों ने कमर कस ली है. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) को चुनौती देने के लिए अभी तक सभी विपक्षी दल एकजुट नहीं हुए हैं.
लोकसभा चुनाव 2019 में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच हुआ गठबंधन सुर्खियों में रहा था. बसपा जहां 10 सीटों पर काबिज हो गई वहीं सपा महज 5 सीटों पर सिमट गई. सीटें हासिल होते ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने अखिलेश यादव से किनारा कर लिया था. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को इस गठबंधन से सबक मिला है. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर उन्होंने इस बात का जिक्र भी नहीं किया कि वे बसपा के साथ कभी गठबंधन करेंगे.
कांग्रेस ने इस विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल पार्टी के साथ गठबंधन करने की कोशिश भी की लेकिन बात नहीं बनी. दरअसल प्रियंका गांधी गोरखपुर में प्रतिज्ञा रैली कर रही थीं. दिल्ली जाने के लिए जब वे लखनऊ चौधरी चरण सिंह हवाई अड्डे पहुंची तो वहां उनकी मुलाकात राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष जयंत चौधरी से हो गई. दोनों नेताओं के बीच करीब एक घंटे तक बातचीत हुई और दोनों ने एक ही विमान से दिल्ली का रास्ता तय किया. लोगों ने कयास लगाया कि कांग्रेस और रालोद में गठबंधन होने जा रहा है लेकिन ऐसा हुआ नहीं. रालोद सपा के साथ ही रहेगा.
किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी बसपा
बसपा सुप्रीमो मायावती यह साफ कर चुकी हैं कि वे किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन के मूड में नहीं हैं. 2019 में लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद ही कहा था कि वे सूबे में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगी. कांग्रेस को अब भी एक साथी की तलाश यूपी में है जो बसपा नहीं है. पंजाब के नतीजों के बाद बसपा और कांग्रेस का गठबंधन जमीन पर होता दिख भी नहीं रहा है.
यूपी में किसके बीच में है सीधी लड़ाई?
यूपी में अभी तक के सियासी समीकरणों पर गौर करें तो लड़ाई सिर्फ बीजेपी बनाम सपा की है. दूसरे घटक दलों की भूमिका बेहद सीमित है. प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस अपनी जड़ें जमाने की कोशिशों में भले ही जुटी है लेकिन स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं की कमी है. यूपी की लड़ाई कांग्रेस के लिए अभी तक आसान नहीं हुई है.
बसपा के पास भले ही सपा से ज्यादा लोकसभा सीटें हों लेकिन जनाधार सपा के मुकाबले कम है. ऐसा इसलिए कि ये सीटें सपा के साथ गठबंधन के तहत आईं थीं न कि अकेले. इस बार बसपा अकेले लड़ रही है. समीकरण ऐसे बन गए हैं कि सत्तारूढ़ दल एकजुट है विपक्षी दलों में फूट है. मुख्य राजनीतिक पार्टियों में सपा, बसपा और कांग्रेस अलग-अलग बीजेपी से सीधी लड़ाई लड़ रही हैं.
सपा स्थानीय स्तर से लेकर संगठन के स्तर तक बेहद मजबूत पार्टी रही है. यूपी में ओबीसी और मुस्लिम-यादव समीकरण भी अखिलेश यादव के पक्ष में रहा है. ऐसे में दूसरे पार्टियों की तुलना में मजबूत स्थिति में सपा है. रालोद के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गठबंधन भी सपा को मजबूती देने वाला है क्योंकि किसान आंदोलन से लेकर गन्ना भुगतान तक, तमाम ऐसे मुद्दे हैं जहां बीजेपी सरकार से लोग खुश नहीं हैं.
सपा को किन पार्टियों का मिला साथ?
राष्ट्रीय लोकदल
चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद राष्ट्रीय लोकदल की कमान जयंत चौधरी संभाल रहे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल की पकड़ है. मौजूदा वक्त में रालोद के पास न तो एक भी विधायक हैं न ही सांसद. किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी से नाराज किसान, रालोद का साथ दे सकते हैं. रालोद की पकड़ जाट वोटरों में अच्छी है. ऐसे में अखिलेश यादव रालोद से एक बार फिर गठबंधन कर रहे हैं. जयंत चौधरी और अखिलेश यादव की कोशिश यही है कि केंद्र सरकार के खिलाफ कृषि कानूनों को लेकर जारी विरोध का असर वे चुनावी साल में अपने पक्ष में भुना लें. जयंत चौधरी भी लगातार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिशों में जुटे हैं.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर हैं. ओम प्रकाश राजभर योगी सरकार में मंत्री भी रहे हैं. बीजेपी से अनबन के बाद उन्होंने अपनी राहें एनडीए से अलग कर ली थीं. ओम प्रकाश राजभर अब समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन का ऐलान कर चुके हैं. ऐलान से पहले राजभर कभी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी से मिलते तो कभी बीजेपी के दिग्गज नेताओं से. बात कहीं बनी नहीं. ओवैसी अभी यूपी में पार्टी बने नहीं हैं ऐसे में उनका साथ छोड़कर अखिलेश यादव के साथ जाना राजभर ने ठीक समझा. यूपी में एक राजभर वोटबैंक बेहद अहम है. सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी के 4 विधायक भी हैं. राजभर के साथ प्रजापति, निषाद, कश्यप, बांसफोर, मुसहर, नट, मंसूरी जैसी जातियां भी जुड़ी हैं. ऐसे में अखिलेश यादव को राजभर का साथ मजबूत कर सकता है.
बीजेपी के साथ किन पार्टियों का है गठबंधन?
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को छोड़कर बीजेपी की सारी सहयोगी पार्टियां साथ हैं. अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन का ऐलान भी हो गया है. यूपी में योगी-मोदी फैक्टर से ही सारी राजनीतिक पार्टियों की लड़ाई है. ऐसे में कौन पार्टी कितना बेहतर प्रदर्शन करती है, यह आने वाले दिनों में ही साफ हो सकेगा.