भारतीयों की सेहत में बड़ा सुधार लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में हालत खराब - WHO की रिपोर्ट 

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Apr 04, 2022, 09:46 PM IST

1970 में एक हजार शिशुओं में से 132 शिशु जन्म के साथ ही दम तोड़ देते थे लेकिन अब काफी सुधार है. 2020 में 1000 में से 32 नवजात की मृत्यु हुई थी.

डीएनए हिंदीः भारत के हेल्थ सिस्टम में हाल के वर्षों में सुधार हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी है. WHO द्वारा  इंडियन हेल्थ सिस्टम रिव्यू शीर्षक से प्रकाशित इस रिपोर्ट में भारत के हेल्थ सिस्टम का लेखा-जोखा दिया गया है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि मोटे तौर पर बीमारयों से लड़ने में भारत पहले से बेहतर परफॉर्म कर रहा है. भारतीयों की औसत उम्र तो बढ़ी है लेकिन इलाज का खर्च बूते से बाहर होता जा रहा है. कुल मिलाकर भारत ने हेल्थ केयर के क्षेत्र में बहुत कुछ किया है लेकिन बहुत कुछ किए जाने की जरूरत भी रिपोर्ट में बताई गई है. 

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 भारतीयों की सेहत में बड़ा सुधार, बढ़ी औसत उम्र  
रिपोर्ट में बताया गया है कि 1970 में लोग 47 वर्ष तक जीते थे जबकि 2020 में औसत भारतीयों की उम्र बढ़कर 70 साल हुई है. हालांकि श्रीलंका में औसत उम्र 74 वर्ष और चीन में औसत आयु 75 वर्ष है. महिलाओं की औसत उम्र 24 वर्ष बढ़ी है जबकि पुरुषों की औसत उम्र 20 वर्ष बढ़ी है. महिलाओं की औसत आयु 71 वर्ष और पुरुषों की औसत आयु 68 वर्ष है.  

1970 में एक हजार शिशुओं में से 132 शिशु जन्म के साथ ही दम तोड़ देते थे लेकिन अब काफी सुधार है. 2020 में 1000 में से 32 नवजात की मृत्यु हुई थी. इसी तरह डिलीवरी के दौरान महिलाओं की मौत के मामले भी घटे हैं. 1990 के आंकड़ों के मुताबिक, 10 हजार में से 556 महिलाएं डिलीवरी के दौरान दम तोड़ देती थी. वहीं 2018 तक ये आंकड़ा कम होकर प्रति 10 हजार महिलाओं पर 113 दर्ज किया गया था. 

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 बीमारियां कर रही हैं भारतीयों को परेशान  
2005 में आयरन की कमी भारतीयों में कुपोषण का सबसे बड़ा कारण थी और इसमें अभी भी बदलाव नहीं आया है. दूसरे नंबर पर भारत के लोग मांसपेशियों में दर्द, कमर और गर्दन के दर्द से परेशान हैं. 15 साल में डिप्रेशन चौथे नंबर की बीमारी से तीसरे नंबर की बीमारी बन गया है.  

हालांकि स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में अभी भी भारत की हालत खराब है. रिपोर्ट के मुताबिक 70 प्रतिशत ओपीडी सेवाएं, 58 प्रतिशत भर्ती मरीज, 90 प्रतिशत दवाएं और टेस्ट अभी भी प्राइवेट सेक्टर के हाथों में है. यानी कि अभी भी बीमारी का इलाज आम आदमी के बस से बाहर है.  

डॉक्टरों और नर्सों का अनुपात पहले के मुकाबले सुधरा है लेकिन अभी भी हालात खराब ही है. भारत में 10 हजार लोगों में से 9.28% डॉक्टर हैं. इसी तरह 10 हजार में से 24 नर्स हैं. इसके अलावा 10 हजार लोगों में से तकरीबन 9 फार्मासिस्ट हैं. रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि भारत में पब्लिक हेल्थ पर खर्च बहुत कम होता है.

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