Bihar Caste Census: नीतीश सरकार की पटना हाई कोर्ट में जीत, जारी रहेगी बिहार में जातीय जनगणना

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Aug 01, 2023, 01:48 PM IST

Nitish Kumar

Bihar Caste Survey: पटना हाई कोर्ट ने उन सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है, जो बिहार में जातीय सर्वेक्षण कराने के विरोध में दाखिल की गई थी.

डीएनए हिंदी: Bihar News- बिहार में अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार को एक बड़ी राहत मिली है. पटना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की तरफ से जातीय जनगणना (Bihar Caste Census) कराए जाने को सही माना है. हाई कोर्ट ने मंगलवार को इस मामले में सुरक्षित रखा फैसला सुनाया, जिसमें जातीय सर्वेक्षण (Bihar Caste Survey) को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है. इस फैसले का मतलब यह है कि राज्य में जातीय जनगणना चालू रहेगी, जो पहले ही 80 फीसदी पूरी हो चुकी है. 

25 दिन पहले सुरक्षित रखा था फैसला

बिहार सरकार की तरफ से कराए जा रहे जातीय सर्वेक्षण के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में 6 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. इन याचिकाओं में सर्वेक्षण पर रोक लगाने का आदेश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार को देने की मांग की गई थी.  राज्य सरकार ने जातीय जनगणना कराने के फैसले को सही बताया था. राज्य सरकार का तर्क था कि इससे सही मायने में वंचित समुदाय तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने में मदद मिलेगी. इन याचिकाओं पर पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की बेंच ने लगातार 5 दिन सुनवाई की थी. दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद पटना हाई कोर्ट ने 25 दिन पहले फैसला सुरक्षित रख लिया था. यह फैसला आज सुनाया गया है.

सरकार ने कहा था कि 'सर्वेक्षण राज्य का अधिकार है'

राज्य सरकार की तरफ से हाई कोर्ट के सामने कहा गया था कि यह जनगणना नहीं बल्कि सर्वेक्षण है. महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट में दलील दी थी कि सर्वेक्षण राज्य का अधिकार है. यह सर्वेक्षण 80 फीसदी पूरा हो चुका है. इसमें किसी को जानकारी देने के लिए अनिवार्य रूप से बाध्य नहीं किया गया है. इसका मकसद आम नागरिकों के बारे में सामाजिक आंकड़े जुटाना है, जिसके आधार पर आम लोगों के कल्याण के लिए सही योजना बनाई जा सके. शाही ने ये भी कहा था कि जातियां समाज का हिस्सा हैं और इनकी सूचना कॉलेज में पढ़ने या नौकरी के लिए आवेदन करने के दौरान देनी पड़ती है. ऐसे में जातीय सर्वेक्षण से किसी की निजता का हनन नहीं हो रहा है.

सरकार की है चुनाव पर भी नजर

राज्य सरकार ने सर्वेक्षण के चुनावी लक्ष्य होने से इंकार किया था, लेकिन यह कहा था कि नगर निकायों और पंचायत चुनावों में पिछड़ी जातियों को सही आरक्षण नहीं  मिला है. फिलहाल ओबीसी के पास 20 फीसदी, एससी को 16 फीसदी व एसटी को 1 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी तक आरक्षण देने की छूट दी है यानी सरकार 13 फीसदी आरक्षण और दे सकती है, जिसके लिए उसे सही जातीय आंकड़ों की जरूरत है.

सात महीने से चल रहा है सर्वेक्षण

बिहार में जातीय सर्वेक्षण की कोशिश नीतीश कुमार लंबे समय से कर रहे हैं. उन्होंने भाजपा के साथ राज्य में गठबंधन होने के बावजूद उसके विरोध को दरकिनार कर 18 फरवरी 2019 को विधानसभा में जातीय सर्वेक्षण का प्रस्ताव पारित कराया था. इसके बाद 27 फरवरी, 2020 को यह प्रस्ताव विधान परिषद में भी पारित कराया गया था. इसके बावजूद सर्वेक्षण का काम करीब 3 साल बाद जनवरी 2023 में शुरू हुआ था. इसके लिए मई की डेडलाइन रखी गई थी, लेकिन 7 महीने में यह 80 फीसदी ही पूरा हो सका है.

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