डीएनए हिंदी: Domestic Violence in India- बॉम्बे हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले में पत्नी द्वारा पति की गर्लफ्रेंड को भी आरोपी बनाए जाने को लेकर नजीर बनने वाला फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट ने कहा है कि पति की गर्लफ्रेंड किसी भी तरह से रिश्तेदार नहीं मानी जा सकती. इसके चलते घरेलू हिंसा में हो रही क्रूरता के लिए उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. हाई कोर्ट ने कहा है कि पति यदि पत्नी के साथ मारपीट करता है तो इसके लिए उसकी गर्लफ्रेंड को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता. इस कमेंट के साथ हाई कोर्ट ने पत्नी की तरफ से पति की प्रेमिका के खिलाफ दर्ज कराई गई घरेलू हिंसा की FIR को रद्द कर दिया है.
2016 में हुई थी पति-पत्नी की शादी
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई, 2016 में शादी के बंधन में बंधे एक दंपती के बीच पिछले कुछ समय से तनाव चल रहा है. साल 2022 में पत्नी ने अपने पति और उसके माता-पिता पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज कराई थी. नासिक के सुरगना पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR में पत्नी ने IPC की धारा 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के साथ क्रूरता) समेत कई अन्य धाराओं के तहत मानसिक और शारीरिक क्रूरता के आरोप लगाए थे. इस मुकदमे में पत्नी ने अपने पति के इस व्यवहार का कारण उनका दूसरी महिला के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को बताया था. महिला ने इसी कारण पति की प्रेमिका को भी अपने साथ हुई घरेलू हिंसा का आरोपी मानते हुए FIR में उसका भी नाम दर्ज कराया था.
पति की प्रेमिका को बनाया था 'मानसिक क्रूरता' का आरोपी
पत्नी ने दिसंबर, 2022 में दर्ज कराए मुकदमे में पति की प्रेमिका को 'मानसिक क्रूरता' का आरोपी बनाया था. इसके खिलाफ प्रेमिका ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और जस्टिस नितिन बोरकर की डबल बेंच ने 18 जनवरी को इस याचिका पर सुनवाई की थी. सुनवाई के बाद उन्होंने प्रेमिका को घरेलू हिंसा के मामले में आरोपी बनाए जाने को गलत बताते हुए FIR को रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर लिया निर्णय
हाई कोर्ट बेंच ने प्रेमिका के खिलाफ दर्ज FIR खारिज करने का निर्णय सुप्रीम कोर्ट के साल 2009 के एक फैसले के आधार पर लिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में धारा 498A के तहत क्रूरता के दायरे के परिभिषित किया था. इसमें कहा गया था कि क्रूरता ऐसा आचरण है, जो किसी महिला को आत्महत्या करने या उसके जिंदगी, अंगों या स्वास्थ्य (मानसिक या शारीरिक) को गंभीर चोट या खतरा पैदा करने के लिए उकसा सकता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि किसी भी स्थिति में प्रेमिका या पति की उपपत्नी (दूसरा विवाह) किसी भी तरीके से रिश्तेदार नहीं मानी जा सकती. रिश्तेदार केवल ब्लड रिलेशन, विवाह या गोद लिए गए व्यक्ति को ही माना जाना चाहिए.
क्या कहा हाई कोर्ट ने फैसले में
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट की बेंच ने कहा कि याची (प्रेमिका) को शिकायतकर्ता (पत्नी) के पति का रिश्तेदार नहीं माना जा सकता है. हाई कोर्ट ने कहा कि याची के खिलाफ इकलौता आरोप शिकायतकर्ता के पति से विवाहेत्तर संबंध रखने का है, जिसके चलते पति उससे शादी करने के लिए पत्नी पर तलाक देने का दबाव डाल रहा है. पत्नी ने इसके लिए उकसाने का कोई आरोप प्रेमिका पर नहीं लगाया है. इसके चलते प्रेमिका पर आपराधिक मुकदमा चलाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.
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