ब्रिटेन के पीएम Boris Johnson ने Russia को बताया महान देश, यूक्रेन को नहीं मिलने वाली थी NATO सदस्यता

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Mar 07, 2022, 04:04 PM IST

बोरिस जॉनसन

रूस की तारीफ करते हुए बोरिस जॉनसन ने कहा कि हम एक महान देश और वर्ल्ड पावर से मुकाबला करने की इच्छा नहीं रखते हैं.

डीएनए हिंदीः ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अमेरिका के न्यूजपेपर न्यू यॉर्क टाइम्स में आर्टिकल लिखा है. इस आर्टिकल में बोरिस ने पश्चिमी देशों को 6 तरीके बताए हैं जिनके जरिए वे यूक्रेन की मदद कर सकते हैं. साथ ही वे रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले से पैदा हुए खराब हालातों की दुहाई भी दे रहे हैं. वह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के नेतृत्व की तारीफ कर रहे हैं. इसके अलावा पुतिन के विफल होने की कामना भी कर रहे हैं. वे लिखते हैं “Vladimir Putin’s act of aggression must fail and be seen to fail”, इसके साथ ही रशिया की एक देश के तौर पर तारीफ कर रहे हैं. यूक्रेन में NATO की सदस्यता को लेकर भी बोरिस ने सच्चाई बताई है. पढ़ें पुष्पेंद्र कुमार की विशेष रिपोर्ट 

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'दुनिया की महाशक्ति से मुकाबला करने की इच्छा नहीं'
बोरिस लिखते हैं ये NATO का CONFLICT नहीं है और ना ही बनेगा. इसके पीछे तर्क देते हैं कि नाटो के किसी भी सदस्य देश ने अपनी सेना यूक्रेन में नहीं भेजी है. आगे कहते हैं हमारी रूस के लोगों से कोई शत्रुता नहीं है. रूस की तारीफ करते हुए कहते हैं हम एक महान देश और वर्ल्ड पावर से मुकाबला करने की इच्छा नहीं रखते. एक तरफ यूक्रेन के राष्ट्रपति NATO से मदद करने की अपील कर रहे हैं. दूसरी तरफ बोरिस का ये बयान आता है. तो क्या मान लिया जाए कि NATO रूस से डर गया है? क्या बोरिस के इस बयान को रशिया को सफाई के तौर पर देखना ठीक नहीं होगा? 

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यूक्रेन को NATO की सदस्यता मिलने की उम्मीद नहीं थी
आगे ब्रिटेन पीएम लिखते हैं सच्चाई ये है कि निकट भविष्य में यूक्रेन को NATO की सदस्यता मिलने की उम्मीद नहीं थी. पुतिन द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के पीछे ये सबसे बड़े कारणों में से एक था. बोरिस बताते हैं कि हम NEGOTIATION के जरिए रशिया की सुरक्षा को लेकर चिंताओं पर कदम उठाने को तैयार थे. खुद उन्होने और बाकी पश्चिमी देशों ने पुतिन से उनका पक्ष समझने की कोशिश की थी. लेकिन फिर भी रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने हमला करने का फैसला किया. अगर यूक्रेन की नाटो में शामिल होने की कोई संभावना ही नहीं थी तो क्या पश्चिमी देश रूस को अपनी बात समझाने में नाकामयाब रहे?  

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