Comedian Kunal Kamra Case: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने करारा झटका दिया है. इस मामले में 'टाईब्रेकर ऑपिनियन' देते हुए हाई कोर्ट के जज जस्टिस जेएस चंदूरकर ने केंद्र सरकार की प्रस्तावित फैक्ट चेक यूनिट को संविधान के विरुद्ध बताया है. स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा की तरफ से दाखिल याचिका पर फैसला सुनाते हुए शुक्रवार को जस्टिस चंदूरकर ने यह बात कही है. जस्टिस चंदूरकर ने कहा कि नई फैक्ट-चेक यूनिट के गठन से भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार), अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 19 (1) (g) (पेशा चुनने की स्वतंत्रता और अधिकार) का उल्लंघन होगा. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार की तरफ से पिछले साल लाए गए इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी संशोधित नियम- 2023 में किए गए फैक्ट चेक यूनिट गठन के प्रावधान को निरस्त कर दिया है.
क्या कहा है जस्टिस चंदूरकर ने फैसले में
जस्टिस चंदूरकर ने IT एक्ट के संशोधित प्रावधानों को निरस्त करते हुए कहा,'मैंने इस मामले पर विस्तार से विचार किया है. प्रस्तावित नियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(जी) (व्यवसाय की स्वतंत्रता और अधिकार) का उल्लंघन हैं. उन्होंने कहा कि IT Rules में 'फर्जी, झूठा और भ्रामक' शब्द बिना किसी परिभाषा के 'अस्पष्ट और इसलिए गलत' हैं.
इससे पहले आया था इस मामले में विभाजित निर्णय
इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट की डबल बेंच ने कुणाल कामरा की याचिका पर सुनवाई की थी. जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस नीला गोखले की डबल बेंच ने 31 जनवरी, 2024 को इस मामले में बंटा हुआ फैसला दिया था. जस्टिस पटेल ने जहां इन नियमों को निरस्त करने का निर्णय सुनाया था, वहीं जस्टिस गोखले ने नियमों को सही माना था. जस्टिस पटेल ने कहा था कि नियमों में बहुत ज्यादा सेंसरशिप लागू की गई है, लेकिन जस्टिस गोखले कहा था कि इनका अभिव्यक्ति की आजादी पर बहुत बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा. इस बंटे हुए फैसले के कारण ही यह फैसला तीसरे जज की राय के लिए भेजा गया था, जिसका फैसला शुक्रवार (20 सितंबर) को आया है.
सुप्रीम कोर्ट मार्च में ही लगा चुका है स्टे
केंद्र के अपनी ऑफिशियल फैक्ट-चेक यूनिट संचालित करने के नोटिफिकेशन पर सुप्रीम कोर्ट मार्च में ही स्टे लगा चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र इस मामले में तब तक आगे नहीं बढ़ सकता, जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट इसकी संवैधानिक वैधता पर निर्णय नहीं लेता है.
कुणाल कामरा की याचिका में कही गई थी ये बात
कुणाल कामरा और अन्य याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार की फैक्ट चेक यूनिट का विरोध करते हुए याचिका दाखिल की थी. उनका कहना था कि ये संशोधन अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतंत्रता पर गैरवाजिब प्रतिबंध लगा देगा. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन प्रावधानों से ऑनलाइन कंटेंट पर सरकारी सेंसरशिप लग जाएगी. सरकार को इस बात का 'अभियोजक, जज' बनने का मौका मिल जाएगा कि ऑनलाइन क्या 'सत्य' पेश किया जाएगा.
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