Delhi Floods: 1978 से 2023 तक क्या बदला? दिल्ली बाढ़ को देखते हुए उठ रहा ये सवाल

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jul 16, 2023, 11:54 AM IST

यमुना में आई बाढ़ की वजह से दिल्ली के निचले इलाकों में घुसा पानी. (तस्वीर-PTI)

साल 1978 से पहले दिल्ली में यमुना की वजह से बाढ़ आती थी. 45 साल बाद भी दिल्ली बाढ़ से जूझ रही है. तब से लेकर अब तक क्यों दिल्ली बाढ़ और जलजमाव की स्थिति से क्यों नहीं निपट सकी, आइए समझते हैं.

डीएनए हिंदी: साल 1978 में एक बार विनाशकारी बाढ़ आई थी. यमुना नदी उफान पर थी. दिल्ली की  जहांगीरपुरी में अचानक बाढ़ का पानी घुस गया. निचले इलाकों में भगदड़ जैसी स्थिति मची और लोग हड़बड़ी में अपने घर खाली करने लगे. आजादपुर और मॉडल टाउन का हाल यह हुआ कि ये इलाके 5 फीट पानी में डूब गए. बांध टूटा और पानी दिल्ली में घुसने लगा. बाहरी दिल्ली की ज्यादातर जमीनें 2 मीटर पानी से लबालब भर गईं. दिल्ली की करीब 43 वर्ग किलोमीटर जमीनें पानी में डूब गई थीं. बाढ़ की वजह से खरीफ की फसलें तबाह हो गईं. कई संपत्तियां तबाह हुईं, लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा. साल 2023 के हालात, 1978 से अलग नहीं है. 

साल 1978 में तब यमुना का जलस्तर 207.49 मीटर तक पहुंचा था, वहीं इस गुरुवार को यमुना नदी का जलस्तर गुरुवार को बढ़कर 208.6 मीटर के पार पहुंच गया था. 1 मीटर ज्यादा पानी और दिल्ली में कमोबेश, वैसी ही स्थितियां नजर आ रही हैं. कई इलाके पानी में पूरी तरह डूबे हैं. हजारों लोग राहत शिविरों में हैं. लोग दोष दिल्ली की ड्रेनेज सिस्टम को दे रहे हैं. दिल्ली के जलमग्न होने की कहानी हथिनिकुंड बैराज से छोड़े गए पानी की वजह से सिर्फ खराब नहीं हुई है, यमुना घाटों पर अतिक्रमण, खराब ड्रेनेज सिस्टम और नदी के जल वहन करने की खोती क्षमता भी इस भीषण बाढ़ के लिए जिम्मेदार हैं. दिल्ली, जरा सी बारिश सहने के काबिल नहीं है.



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जरा सी बारिश नहीं झेल पाती है दिल्ली

दिल्ली के निचले इलाकों में पानी भर गया है. रिहायशी इलाके भी बाढ़ की जद में हैं. हालात इतने बिगड़ गए कि सीएम अरविंद केजरीवाल को कैबिनेट की बैठक बुलानी पड़ी. उन्होंने मंत्रियों को निर्देश दिया है कि दिल्ली की हालत पर नजर रखें, कैंप में रह रहे लोगों से बातचीत करें, यह तय करें कि उन्हें पर्याप्त राशन-पानी मिल पा रहा है. दिल्ली की बाढ़ पर अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी नजर है. एनडीआरएफ की कई टीमें तैनात हो गई हैं. पर सवाल यह उठता है कि दिल्ली में क्यों ऐसे भयावह नजारे नजर आ रहे हैं.

 

दिल्ली में बाढ़ का क्या रहा है इतिहास?

दिल्ली में बाढ़ नई नहीं है. साल 1924, 1977, 1978, 1995, 2010 और 2013 में भी बाढ़ आई थी. लोगों ने दिल्ली में बाढ़ आने का दोष, ड्रेनेज सिस्टम से लेकर हथिनीकुंड बैराज पर मढ़ते रहे हैं. दिल्ली में बाढ़ का खतरा उन्हीं जगहों पर है जहां एक्टिव फ्लड प्लेन में लोग बस गए हैं. यमुना के तटीय इलाकों में जहां सघन आवास हैं, बाढ़ का खतरा वहीं पर है. अगर हालात ऐसे ही रहे और अंधाधुंध निर्माण होता रहा तो दिल्ली में आने वाले साल और भयावह होंगे.

क्यों बार-बार आ रही है बाढ़?

साल 1978 में यमुना के तटबंध मजबूत नहीं थे इसलिए खतरनाक बाढ़ आई थी. अब तटबंध तो मजबूत हैं, जहां लीकेज थी, वहां आर्मी ने दुरुस्त करने की कोशिश की लेकिन दिल्ली के कुछ इलाकों में पानी भर गया. आज मजबूत तटबंध हैं लेकिन पानी बहकर निकलने के लिए पर्याप्त जगह ही नहीं है. नालियां छोटी-छोटी हैं और ज्यादा पानी जमा होने की वजह से उसके बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा है.

दिल्ली के किन इलाकों में भरा है पानी?

दिल्ली के बेला रोड, राजकिशोर रोड, सिविल लाइंस, लाल किला, आउटर रिंग रोड, यमुना बाजार, ISBT कश्मीरी गेट, शंकराचार्य रोड, मजनू का टीला, खड्डा कॉलोनी और बाटला हाउस में बाढ़ का खतरा अभी तक टला नहीं है. दिल्ली के विश्वकर्मा कॉलोनी, शिव विहार, खजूरी कॉलोनी, सोनिया विहार, किंग्सवे कैंप, जीटीबी नगर, राजघाट के पास जलभराव, वजीराबाद, भैरव रोड और मोनेस्ट्री मार्केट तक पानी भरा है. साल 1978 में आई बाढ़ में भी ये इलाके अछूते नहीं थे, इस बार की बाढ़ में ये इलाके ज्यादा प्रभावित हुए हैं.

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क्यों दिल्ली में आई है ऐसी बाढ़? 1978 के बाद भी नहीं बदले हालात

- यमुना में बिना शुद्धीकरण के गिरने वाला कचड़ा, नदी की गहराई को कम कर रहा है. पहाड़ों से निकलने वाली नदियां भी पानी रोकने में फेल हो रही हैं. ऐसे में अगर पहाड़ों पर लगातार कई दिनों तक बारिश हो, हथिनी कुंड बैराज से बड़ी मात्रा में पानी रिलीज करना मजबूरी हो जाए तो दिल्ली में ऐसे ही हालात नजर आएंगे. दिल्ली के पास बाढ़ का पानी स्टोर करने की क्षमता भी नहीं है. अगर बाढ़ का पानी रोकनी की क्षमता विकसित हो जाए तो जलस्तर भी दुरुस्त होगा और आने वाले कल के लिए पानी की समस्या भी हल होगी. 

- पहाड़ी इलाकों में पानी को रोकने की क्षमता कई वजहों से कम हुई है. जंगल खत्म हो रहे हैं. मैदानी इलाके सिमट रहे हैं. जगह-जगह घर बन रहे हैं. तटीय इलाकों में अंधाधुंध निर्माण हो रहा है, अवैध खनन हो रहा है. फ्लड प्लेन को नुकसान पहुंचा है तो इनका असर, दिल्ली में भी दिखना तय है. 

- हथिनीकुंड बैराज दिल्ली से करीब 180 किलोमीटर दूर है. वहां से अचानक  1,51,000 क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया. पहाड़ों पर हो रही अप्रत्याशित बारिश और दिल्ली में हो रही बारिश ने हालात को और मुश्किलें बढ़ा दीं. 

अतिक्रम भी बाढ़ की है एक वजह

दिल्ली में लोग यमुना की तटों पर भी बड़ी संख्या में बसे हैं. दिल्ली में बाढ़ जैसी स्थिति का एक अन्य कारण बाढ़ क्षेत्र का अतिक्रमण है जिससे पानी गुजरने के लिए बहुत कम जगह बचती है. बाढ़ की प्रमुख वजहों में अतिक्रमण और गाद भी है. पहले पानी को बहने के लिए जगह मिलत जाती थी, अब पानी एक संकुचित क्रॉस-सेक्शन से होकर गुजरता है. यमुना के किनारे 37,000 से ज्यादा लोग रहते हैं. यहां नदी की जमीन पर अतिक्रमण भी खूब हुआ है. ऐसी स्थिति में अतिक्रम भी बाढ़ के लिए जिम्मेदार है. 1978 से अब तक, अतिक्रमण हटाने के लिए कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाए गए, बल्कि यमुना की जमीन पर लोगों को बसाने की कवायद जरूर हुई.

यमुना नदी में गिर रहे नाले, ऊंची हो रही है नदी

यमुना नदी, अपशिष्टों से हर साल पट रही है. यमुना नदी का अपना पानी हो न हो, नालों के पानी से यमुना भरी पड़ी है. बरसाती नालों में बहने वाला सीवेज और दरारों के जम जाने की वजह से भी दिल्ली में बाढ़ आती है, जिसे ठीक करने की कोशिश ही नहीं हुई. वजीराबाद से ओखला तक 22 किलोमीटर की नदी के भीतर 20 से अधिक पुल प्रवाह को बाधित करते हैं. नदी के तल में गाद ज्यादा जमा होती है, जिसके कारण चट्टान बनने लगते हैं, नदियां ऊंची होने लगती हैं. जरा सा पानी बढ़ने पर इसी वजह से अब यमुना उफान मारने लगती है और घरों में पानी घुसने लगता है.

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