डीएनए स्पेशल: पानी नहीं जहर पी रहे हैं दिल्लीवासी!

| Updated: Dec 06, 2021, 10:39 PM IST

दिल्ली में जल प्रदूषण है बड़ी समस्या. (सांकेतिक तस्वीर)

हमारी टीम ने 11 जगहों से पानी के सैंपल जुटाए. उनकी अलग-अलग लैब्स में टेस्टिंग की गई. 9 सैंपल्स के नतीजे हद से ज्यादा खराब रहे.

डीएनए हिंदी: दिल्ली में वायु प्रदूषण के साथ-साथ जल प्रदूषण की समस्या गहराती चली जा रही है. कुछ जगहों पर पानी की गुणवत्ता इतनी बुरी है कि पीना छोड़िए उसमें नहाने पर भी लोग बीमार पड़ जाएं. 2 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाली दिल्ली में पानी का हाल बेहाल है. टीम जी न्यूज ने 'ऑपरेशन गंदाजल' मिशन के तहत  ऐसी ही पड़ताल की है.

हमारे रिपोर्टर्स ने दिल्ली की 11 जगहों पर जाकर सैंपल जुटाए. अलग-अलग प्रयोगशालाओं (Labs) में इन सैंपल्स की टेस्टिंग की गई. 9 सैंपल्स की गुणवत्ता बेहद खराब रही. इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि दिल्ली में सप्लाई होने वाला 80 फीसदी पीने योग्य पानी की गुणवत्ता बेहद खराब है. स्वास्थ्य आधार पर भी इसे पीना गलत है. यह हाल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का है. देश के दूसरे हिस्सों का हाल क्या होगा यह अपने आप में एक अहम सवाल है. 

किन जगहों पर बुरा है हाल?

दक्षिणी दिल्ली की गिनती दिल्ली के पॉश इलाकों में होती है. यहां करोड़ों की लागतों से तैयार बड़े-बड़े घर हैं. क्रीम दिल्ली यहीं बसी हुई है. यहां भी पानी की गुणवत्ता बेहद खराब है. संसद से कुछ किलोमीटर की दूरी पर नॉर्थ एवेन्यू में भी यही हाल है. 3 किलोमीटर दूर नॉर्थ एवेन्यू में भी पीने योग्य पानी नहीं है.

हजार-करोड़ों में खेल रहे हैं वॉटर इंडस्ट्री के प्लेयर्स

नदी, झरने, बारिश, तालाब, जमीन और ग्लेशियर्स से निकलने वाले पानी के बदले में हमसे प्रकृति कुछ भी नहीं लेती है. हकीकत यह है कि महानगरों में पानी का कारोबार अब हजार-करोड़ की कमाई का जरिया बन गया है.  बोतलों में बिकने वाले पानी का कारोबार भार में करीब 28,000 करोड़ का है. 2023 तक यह कारोबार 40,000 करोड़ का आंकड़ा छू लेगा. भारत में हर साल लोग 6,500 करोड़ रुपये पानी पर खर्च करते हैं. 

2019 में ही भारत सरकार ने 3.6 लाख करोड़ की लागत से एक स्कीम की शुरुआत की थी जिसका मकसद देश के हर घर में साफ पानी पहुंचाना था. मतलब साफ है कि 4 लाख करोड़ हर साल देश के लोग और सरकार साफ पानी के लिए खर्च कर रही है. इन उपायों के बाद भी लोगों को साफ पानी तक मुहैया नहीं हो पा रहा है. कंपनियां हजारों-करोड़ों रुपये महज इसलिए ले रहे हैं हमें साफ पानी बोतलों में दे रही हैं.

कितना होना चाहिए पानी का टीडीएस?

ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) के मुताबिक टोटल डिसोल्वड सॉलिड (TDS) एक लीटर पानी में 500 होना चाहिए. टीडीएस का मतलब होता है कि पानी में घुले हुए खनिज पदार्थ. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के मुताबिक पानी में टीडीएस की मात्रा अगर 300 से ज्यादा हो तो यह स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. भारत में 500 से ज्यादा टीडीएस भी मान्य है.  दिल्ली में 11 में से 9 जगहों पर टीडीएस 500 से कहीं ज्यादा था. 


4 जगहों पर पानी की गुणवत्ता यमुना नदी के पानी से भी ज्यादा खराब है. मोरी गेट और मौजपुर केवल दो इलाके ऐसे हैं जहां पानी की गुणवत्ता अच्छी है जो मानकों पर खरा उतरती है.
 

हाई टीडीएस के क्या हैं नुकसान?

500 से ज्यादा टीडीएस का पानी नहाने योग्य भी नहीं होता है. लोग इतने टीडीएस का पानी पीने के लिए मजबूर हैं. हाई टीडीएस का पानी पीने की वजह से डायरिया, किडनी इन्फेक्शन, बुखार, पेट की बीमारियां और उल्टी हो सकती है. ऐसे पानी के लगातार उपयोग की वजह से त्वचा से संबंधित बीमारियां भी हो सकती हैं. खराब टीडीएस का पानी पीने से कैंसर भी हो सकता है.

अमेरिका, कनाडा, जापान, ब्रिटेन और सऊदी अरब जैसे देशों में पीने योग्य पानी की उपलब्धता 24 घंटे है. अमेरिका जैसे देशों में लोग वॉटर प्यूरिफायर भी नहीं लगवाते क्योंकि वहां आप किसी भी नल से आने वाला पानी पी सकते हैं. ऐसी सुविधाएं फिनलैंड, पोलैंड, स्पेन, क्रोएशिया, बेल्जियम, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों में लगभग हर जगह उपलब्ध है. 

दुर्भाग्य यह है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 999 है, वहीं कई इलाके ऐसे हैं जहां टीडीएस भी 999 है. साफ हवा-पानी की किल्लत की वजह से लाखों-करोड़ों का कारोबार खड़ा हो रहा है. कंपनियां अब मुंहमांगे दाम ले रही हैं.