डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला की याचिका पर भावनात्मक फैसला सुनाया है. 82 साल की एक महिला ने कोर्ट में अर्जी देकर कहा कि वह तलाकशुदा नहीं मरना चाहती है. उसकी दलीलें सुनकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया कि महिला खुश हो गई. महिला ने उसके 89 वर्षीय पति की तलाक की अर्जी खारिज कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 और हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 पर विचार किया और कहा कि तलाक की इजाजत नहीं दी जा सकती है.
महिला के पति एयर फोर्स के रिटार्यड अधिकारी हैं. 89 साल की उम्र में उन्होंने कोर्ट से गुहार लगाई कि वे अपनी पत्नी को तलाक देना चाहते हैं. महिला ने कोर्ट से कहा कि वह तलाकशुदा नहीं मरना चाहती है. कोर्ट ने महिला की भावनाओं का सम्मान करते हुए 23 साल से चल रहे तलाक के मुकदमे को रद्द कर दिया.
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महिला ने पति की याचिका पर विरोध जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उनकी शादी साल 1963 में हुई थी. उनकी शादी 60 साल पुरानी हो गई है. शुरुआती दिनों में उनका शादी अच्छी चली लेकिन साल 1984 में पति का ट्रांसफर मद्रास हो गया. दोनों के बीच रिश्ते खराब होते गए. दोनों अलग-अलग रह रहे थे. वे अपने बेटे के साथ मायके में रहने लगीं.
महिला की इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई दरियादिली
महिला ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वे शिक्षक रही हैं, इसलिए दांपत्य जीवन का अर्थ को अच्छी तरह समझती हैं. वह तलाकशुदा नहीं मरना चाहती हैं. दोनों की तरफ से रिश्ते सुधारने की कोशिश हुई लेकिन चीजें ठीक कभी नहीं हो पाईं. साल 1996 में महिला के पति ने निचली अदालत में पत्नी पर उत्पीड़न का आरोप लगाया और एक याचिका दायर कर दी.
पति कोर्ट में यह साबित नहीं कर पाया कि महिला उसका उत्पीड़न कर रही थी. यह केस निचली अदालत से खारिज हो गया. पति ने फिर हाई कोर्ट में याचिका दायर की और वहां से मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. महिला की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने भी उन्हें राहत नहीं दी.
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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच में इस केस की सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सवाल उठा कि क्या ऐसे मामलों में अनुच्छेद 142 के तहत तलाक का फैसला दिया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने महिला की दलीलों को सुनने के बाद तलाक की अर्जी खारिज कर दी.
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