'लव मैरिज में हैं तलाक के ज्यादा मामले', जानिए Supreme Court ने क्यों कही ऐसी बात

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:May 18, 2023, 04:30 PM IST

Supreme Court

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि विवाह विच्छेद के ज्यादातर मामले लव मैरिज से जुड़े हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कपल को मध्यस्थता के जरिये विवाद सुलझाने की सलाह दी है.

डीएनए हिंदी: Suprme Court Comment On Love Marriage- सुप्रीम कोर्ट ने भारत में तलाक की बढ़ती दर पर चिंता जताई है. साथ ही कहा है कि तलाक के ज्यादातर मामले लव मैरिज करने वाले कपल्स के बीच से सामने आ रहे हैं. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय कौल की सुप्रीम कोर्ट बेंच तलाक के एक मुकदमे से जुड़ी ट्रांसफर पिटिशन की सुनवाई कर रही है. वकील ने बेंच को बताया था कि यह मामला लव मैरिज का है. इस पर जस्टिस गवई ने कमेंट किया कि अधिकांश तलाक लव मैरिज वाले मामलों में ही हो रहे हैं. बेंच ने सुनवाई करते हुए वादियों को मध्यस्थता के जरिये विवाद सुलझाने की सलाह दी, जिसका पति ने विरोध किया. इस पर बेंच ने कहा कि अदालत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए बिना उनकी अनुमति के भी तलाक को मंजूरी दे सकती है. बता दें कि 2 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि वह अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करके तत्काल तलाक मंजूर कर सकती है.

मध्यस्थता के लिए ही भेजा गया मामला

पति के विरोध के बावजूद सुप्रीम कोर्ट बेंच ने मामले को मध्यस्थता के जरिये सुलझाने के लिए भेज दिया है. बेंच ने कहा है कि दोनों पक्ष आपस में बातचीत कर इस मामले का निपटारा करने की राह तैयार करें. ऐसा नहीं होने पर अदालत फैसला करेगी.

तत्काल तलाक पर यह था सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2 मई को तत्काल तलाक को लेकर ऐतिहासिक फैसला दिया था. इस फैसले में कहा गया था कि जिस शादी में संबंध सुधार की गुंजाइश ना बची हो, वहां सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत मिले अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए तत्काल तलाक का आदेश पारित कर सकती है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह हिंदू मैरिज एक्ट की तहत तय प्रक्रिया की शर्त को हटा दे. इसके बाद तलाक की प्रक्रिया के लिए फैमिली कोर्ट जाने और तलाक पाने के लिए 6 महीने का अनिवार्य इंतजार नहीं करना होगा.

क्या है अनुच्छेद 142 (1), जो देता है सुप्रीम कोर्ट को विशेषाधिकार

संविधान के अनुच्छेद 142 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट को विशेषाधिकार मिला हुआ है. इस विशेषाधिकार के तहत किसी मामले में फैसला लेने में मौजूदा कानून और प्रक्रिया के तहत पूरी तरह न्याय करने में कठिनाई आती है तो सुप्रीम कोर्ट कानूनी औपचारिकताओं को एकतरफा करते हुए आदेश दे सकती है. 

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