फिर शुरू हो सकता है Farmer Protest, 'मिशन UP' के लिए एक्टिव संयुक्त किसान मोर्चा

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jan 29, 2022, 07:21 AM IST

Assembly Election से ठीक पहले संयुक्त किसान मोर्चा ने मोदी सरकार के खिलाफ वादे पूरे ना करने का आरोप लगाया है.

डीएनए हिंदी: तीन क़ृषि कानूनों के विरोध में पिछले एक वर्ष से ज्यादा समय से चले किसान आंदोलन (Farmer Protest) के बाद मोदी सरकार (Modi Government) ने जैसे ही कानून रद्द किए तो यह विरोध भी कुछ शर्तों के साथ खत्म हो गया. इसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों (5 States Assembly Elections) से पहले बीजेपी (BJP) के लिए इसे एक राहत की तरह देखा जा रहा था लेकिन अब एक महीने बाद इन किसानों ने फिर मोदी सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया है और इसके चलते ही संयुक्त किसान मोर्चा 31 जनवरी को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान कर चुका है. 

देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान

दरअसल, किसान आंदोलन का नेतृत्‍व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने तय किया है कि 31 जनवरी को देश भर में “विश्वासघात दिवस” मनाया जाएगा. इसके तहत जिला और तहसील स्तर पर बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे. मोर्चे से जुड़े सभी किसान संगठन जोर-शोर से इसकी तैयारी में जुटे हैं. मोर्चा को उम्मीद है कि यह कार्यक्रम देश के कम से कम 500 जिलों में आयोजित होगा.

सरकार ने वादे नहीं पूरे किए

संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि मोदी सरकार ने जो वादे किए थे वो पूरे नहीं किए. ऐसे में किसानों द्वारा अब आलाअधिकारियों को ज्ञापन सौंपा जाएगा और विरोध जताया जाएगा. किसान मोर्चा ने कहा कि सरकार का किसान विरोधी रुख इस बात से जाहिर है कि 15 जनवरी के फैसले के बाद भी भारत सरकार ने 9 दिसंबर के अपने पत्र में किया कोई वादा पूरा नहीं किया है. आंदोलन के दौरान हुए केस को तत्काल वापस लेने और शहीद परिवारों को मुआवजा देने के वादे पर पिछले दो सप्ताह में कोई भी कार्रवाई नहीं हुई है.

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वहीं किसान मोर्चा MSP का मुद्दा एक बार फिर उठाने लगा है. मोर्चे के बयान में कहा गया कि MSP के मुद्दे पर सरकार ने कमेटी के गठन की कोई घोषणा नहीं की है इसलिए मोर्चे ने देशभर में किसानों से आह्वान किया है कि वह “विश्वासघात दिवस” के माध्यम से सरकार तक अपना रोष पहुंचाएं. वहीं किसान संगठनों का कहना है कि वे उत्तर प्रदेश में केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते रहेंगे और संचार के सभी साधनों के जरिए ‘मिशन उत्तर प्रदेश’ में सरकार के खिलाफ अभियान चलाएंगे. 

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भाजपा की बढ़ेंगी मुश्किलें 

चुनावों से पहले किसान आंदोलन का खत्म होना बीजेपी के लिए राहत माना जा रहा था लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा का पुनः सक्रिय होना और बयानों में तल्खियां भाजपा के लिए विधानसभा चुनावों के मतदान के ठीक पहले मुसीबत बन सकता है. यदि सबकुछ किसान मोर्चा के प्लान के तहत ही होता है तो इसका बीजेपी को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी नुकसान हो सकता है जो कि बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनावी जंग माना जा रही है.

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