Supreme Court की सलाह, जनकल्याणकारी योजनाएं लागू करने से पहले सरकारी खजाने को ध्यान में रखें

स्मिता मुग्धा | Updated:Apr 06, 2022, 04:32 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने दी सरकार को सलाह

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोककल्याण की योजना लागू करने से पहले सरकारी कोष पर पड़ने वाले असर को देखना चाहिए. अरविंद सिंह की रिपोर्ट.

डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को लोककल्याण की योजनाओं को लागू करने को लेकर सलाह दी है. सर्वोच्च अदालत का कहना है कि कानून या जनकल्याणकारी योजना लागू करने से पहले सरकार सरकारी खजाने पर पड़ने वाले असर को भी ध्यान में रखना चाहिए. कोर्ट ने इसके लिए शिक्षा के अधिकार का हवाला दिया है. 

शिक्षा के अधिकार का दिया हवाला
जस्टिस यू यू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने ASG ऐश्वर्या भाटी से कहा कि यह हमारी बिन मांगी सलाह है. उन्होंने कहा कि आप योजना के वित्तीय असर को भी ध्यान में रखें. आप शिक्षा का अधिकार कानून को ही ले लीजिए. कानून तो बना दिया गया है लेकिन उसका पालन कराने के लिए स्कूल कहां हैं? राज्यों के पास शिक्षक कितने हैं? ज्यादातर के पास जरूरत के लिहाज से कम ही शिक्षक हैं और जब ऐसी शिकायतें कोर्ट के सामने आती है तो सरकार बजट न होने का हवाला देती हैं.

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जनहित याचिका की सुनवाई पर कोर्ट ने की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी ''वी द वीमेन ऑफ इंडिया ''नाम की संस्था की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की है. याचिका में घरेलू हिंसा कानून, 2006 को पूरी तरह लागू करने की मांग की थी. याचिकाकर्ता ने घरेलू हिंसा से प्रताड़ित महिलाओं को प्रभावी कानूनी सहायता देने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा दिलाए जाने की मांग की गई थी. इसके लिए पीड़ित महिलाओं की शिकायत सुनने के लिए अधिकारी की नियुक्ति करने से लेकर महिलाओं को कानूनी मदद देने और उनके लिए आश्रय घर बनाए जाने की मांग शामिल थी. 

घरेलू हिंसा कानून को लेकर थी मांग
25 फरवरी को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने ये पाया था कि कई राज्यों ने आईएएस अधिकारियों/ रेवेन्यू अधिकारियों को ही घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन अफसर नियुक्त कर दिया है. कोर्ट ने तब टिप्पणी की थी कि कानून बनाते वक्त सरकार की यगह मंशा नहीं रही होगी. इतना तो साफ जाहिर है कि पहले से ही अपने काम के दबाव के चलते ये अफसर अपनी इस नई जिम्मेदारी के लिए वक्त नहीं निकाल पाएंगे.

घरेलू हिंसा मामले पर सरकार से मांगे कई जवाब 
कोर्ट ने यह भी कहा था कि कई बड़े राज्यों में आबादी के अनुपात में वहां प्रोटेक्शन अफसर की संख्या बहुत कम है. इस सुनवाई में कोर्ट ने घरेलू हिंसा क़ानून को प्रभावी रूप से लागू करने के लिये सरकार से कई बिंदुओं पर हलफनामा दायर करने को कहा था. सुनवाई करते हुए भी कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि रेवेन्यू अफसर को प्रोटेक्शन अफसर की दोहरी जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती है. यह अलग तरह का पद है जिसके लिए विशेष ट्रेनिंग की ज़रूरत है.

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सरकार को दिया 2 हफ्ते का वक्त
कोर्ट ने सरकार की ओर से पेश ASG ऐश्वर्या भाटी से कहा कि आप राज्यवार घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों के आंकड़े जुटाएं. फिर ये देखें कि हर राज्य में महिलाओं की शिकायत सुनने के लिए कितने अधिकारियों की जरूरत होगी और उसके लिए कितने फंड की जरूरत होगी. बहरहाल कोर्ट ने सरकार को स्टेटस रिपोर्ट दायर करने के लिए दो हफ्ते का वक्त दे दिया है. अगली सुनवाई 26 अप्रैल को होगी.

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