'पति करे या कोई और, रेप बस रेप ही होता है' Marital Rape पर गुजरात हाई कोर्ट का अहम फैसला

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Dec 19, 2023, 04:43 PM IST

Gujarat High Court (File Photo)

Marital Rapes In India: गुजरात हाई कोर्ट ने मेरिटल रेप पर यह अहम फैसला ऐसे समय में दिया है, जब सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर दर्जनों याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है.

डीएनए हिंदी: Gujarat News- गुजरात हाई कोर्ट ने वैवाहिक संबंधों में दुष्कर्म (Marital Rape) को लेकर बेहद व्यापक और ऐसा फैसला दिया है, जिसे ऐसे मामलों में नजीर माना जा सकता है. हाई कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि दुष्कर्म (Rape) एक 'जघन्य अपराध' ही रहता है. फिर चाहे वह महिला के पति द्वारा ही क्यों न किया गया हो. हाई कोर्ट के जस्टिस दिव्येश जोशी की एकल बेंच ने यह फैसला दुष्कर्म के एक मामले में महिला आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते समय दिया. महिला पर पुरुष आरोपी को यौन उत्पीड़न के लिए उकसने का आरोप है. जस्टिस जोशी ने याचिका खारिज करते हुए इस मूल सिद्धांत पर जोर दिया कि अपराधी और पीड़ित के बीच संबंध के बावजूद 'बलात्कार बलात्कार ही होता है'. 

फैसले में दिया गया है मेरिटल रेप के खिलाफ वैश्विक जागरूकता का हवाला
जस्टिस जोशी ने अपने फैसले में मेरिटल रेप को अवैध घोषित करने पर बनी वैश्विक सहमति को भी हाईलाइट किया है. उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि 50 अमेरिकी राज्यों, 3 ऑस्ट्रेलियाई राज्यों, न्यूजीलैंड, कनाडा, इजरायल, फ्रांस, स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे, सोवियत संघ, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया और ब्रिटेन आदि देश पहले ही मेरिटल रेप को अपराध घोषित कर चुके हैं. जज ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत में मौजूदा लीगल कोड जिस ब्रिटेन के कानून की प्रेरणा से तैयार किया गया है, वह ब्रिटेन भी 1991 में ही दुष्कर्म के मामले में पति को मिली छूट को रद्द कर चुका है.

सुप्रीम कोर्ट में चल रही बहस के दौरान आया है फैसला
Zee News की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट का यह फैसला इसलिए अहम है, क्योंकि यह ऐसे समय में आया है, जब सुप्रीम कोर्ट में IPC की धारा 375 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बहस चल रही है. यह धारा पति को जबरन यौन संबंध बनाने के मामले में पति को दुष्कर्म के कानूनों के तहत कार्रवाई से छूट देती है. पति को मिली इस संवैधानिक इम्यूनिटी के खिलाफ दर्जनों जनहित याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हैं. इन सभी याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह क्लॉज विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव है. इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के मई 2022 के जजों के बीच बंटे हुए फैसले ने कानूनी राह को और ज्यादा जटिल बना रखा है.

क्या था वो मामला, जिसमें आया है गुजरात हाई कोर्ट के यह फैसला
गुजरात हाई कोर्ट (Gujarat High Court) ने यह फैसला राजकोट मेरिटल रेप केस (Rajkot Marital Rape Case) में दिया है. अगस्त, 2023 में राजकोर्ट निवासी एक महिला ने अपने पति, ससुर और सास पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. गुजरात पुलिस (Gujarat Police) ने तीनों को गिरफ्तार करने के बाद IPC की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया था. इन धाराओं में रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता, रेप, यौन शोषण और आपराधिक कृत्य का आरोप लगाए गए हैं.

सामान्य मेरिटल रेप से अलग है ये केस
राजकोट केस सामान्य वैवाहिक दुष्कर्म का मामला नहीं है बल्कि इस पीड़ित महिला की आपबीती इससे कहीं आगे है. तीनों आरोपियों पर जबरन यौन कृत्य के लिए परेशान करने वाले आरोप भी शामिल हैं. आरोप है कि पैसा कमाने के लिए महिला को यौन कृत्य रिकॉर्ड किए गए, जिन्हें अश्लील साइटों पर रिकॉर्ड और प्रसारित किया गया था. साथ ही महिला ने ससुराल वालों पर अपने परिवार के सदस्यों को डराने और धमकी देने जैसे भी आरोप लगाए हैं. 

बेहद विस्तार से की गई है फैसले में यौन हिंसा पर चर्चा
जस्टिस जोशी ने अपने 13 पेज के फैसले में यौन हिंसा के अलग तरीकों पर बात की है, जिनमें पीछा करना, मौखिक और शारीरिक हमला करना व शोषण शामिल हैं. हाई कोर्ट ने ऐसे अपराधों को छोटा करके दिखाने और इनका सामान्यीकरण होने पर भी चिंता जताई. साथ ही उन दृष्टिकोण की तरफ भी आगाह किया, जो हानिकारक रूढ़िवादिता को कायम रखते हैं. आदेश में यह भी कहा गया है कि ऐसे अपराधों को जब 'लड़के लड़के ही रहेंगे' जैसे Pharases के साथ रोमांटिक रूप दिया जाता है या यह कहकर नजरअंदाज कर दिया जाता है, तो जीवित बचे लोगों पर भी इसका स्थायी और हानिकारक प्रभाव पड़ता है.