डीएनए हिंदी: साल 2002 में हुए गुजरात दंगों के दो दशक के पाद अहमदाबाद की एक SIT कोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी समेत नरोदा गाम नरसंहार के सभी 67 आरोपियों को बरी कर दिया है.
अहमदाबाद के नरोदा गाम में गोधरा मामले के बाद भड़के दंगों में मुस्लिम समुदाय के 11 सदस्यों के मारे जाने के दो दशक से अधिक समय बाद विशेष अदालत का यह फैसला आया है. पीड़ित परिवारों का कहना है कि फैसले को गुजरात हाई कोर्ट के सामने चुनौती दी जाएगी क्योंकि उन्हें न्याय नहीं मिला है. आरोपी पक्ष का कहना है कि उन्हें मिली राहत न्याय की जीत है.
अहमदाबाद स्थित SIT मामलों के स्पेशल जज एसके बक्शी की अदालत ने नरोदा गाम दंगों से जुड़े इस बड़े मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया. गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में आग लगाए जाने के बाद राज्यभर में दंगे भड़क गए थे. इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त विशेष जांच दल ने की थी. अदालत के विस्तृत आदेश आने वाले दिनों में उपलब्ध होने की उम्मीद है.
इसे भी पढ़ें- Poonch Terrorist Attack: गाड़ी पर ग्रेनेड अटैक, जवानों पर बरसाईं धड़ाधड़ गोलियां, जंगल में छिपकर सेना के काफिले का इंतजार कर रहे थे आतंकी
किन आरोपियों को कोर्ट ने किया है बरी?
जिन आरोपियों को बरी किया गया उनमें गुजरात सरकार में मंत्री रहीं माया कोडनानी, विहिप के पूर्व नेता जयदीप पटेल और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी शामिल हैं. इस मामले में कुल 86 आरोपी थे, जिनमें से 18 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई, जबकि एक को अदालत ने CrPC की धारा 169 के तहत साक्ष्य के आभाव में पहले आरोपमुक्त कर दिया था. सीआरपीसी की धारा 169 साक्ष्य की कमी होने पर अभियुक्त की रिहाई से संबंधित है. मामले में बरी किए गए सभी 67 आरोपी पहले से ही जमानत पर थे.
पहले दोषी, अब सबूतों के अभाव में बरी
माया कोडनानी और बाबू पटेल ऊर्फ बाबू बजरंगी को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में गोधरा कांड के बाद 2002 में हुए दंगों से संबंधित मामले में एसआईटी अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. हाई कोर्ट ने बाद में कोडनानी को बरी कर दिया था, लेकिन मामले में बजरंगी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था.
क्या था नरोदा कांड?
नरोदा पाटिया में 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी. मामले में 86 अभियुक्तों में से 82 का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता चेतन शाह ने कहा कि उन्होंने तय निर्दोषों को बरी कर दिया जाए. उन्होंने इसके लिए अदालत में 7,719 पृष्ठों में एक लिखित तर्क प्रस्तुत किया.
इसे भी पढ़ें- कश्मीर में बौखलाए आतंकी, G-20 की बैठक से सुलग उठी घाटी, क्या है पुंछ अटैक की इनसाइड स्टोरी? पढ़ें
पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता शहशाद पठान ने कहा कि बरी करने के आदेश को गुजरात उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी. शहशाद पठान ने कहा, 'हम उन आधारों का अध्ययन करेंगे जिसपर विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी करने का फैसला किया और आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे. ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़ितों को न्याय से वंचित कर दिया गया है. सवाल यह है कि पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में 11 लोगों को किसने जलाया?'
आरोपियों के खिलाफ क्या थे आरोप?
नरोदा ग्राम मामले में आरोपियों के खिलाफ IPC की धारा 302, 307, 143, 147, 148, 120बी के तहत मुकदमा चल रहा था. ये सभी धाराएं, हत्या, हत्या की कोशिश, आपराधिक साजिश, हथियारों के साथ दंगा, दंगा जैसे खतरनाक अपराधों पर लगाई जाती हैं.
एक दिन पहले गोधरा स्टेशन के पास भीड़ द्वारा साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 बोगी में आग लगाने के विरोध में बुलाए गए बंद के दौरान 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के नरोदा गाम क्षेत्र में दंगे भड़क गए थे. ट्रेन की बोगी में आगजनी की घटना में कम से कम 58 यात्री, जिनमें ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे, जलकर मर गए थे.
इसे भी पढ़ें- जंगलों में उतरे सेना के जवान, जगह-जगह डॉग स्क्वाड, पुंछ के गुनहगारों को पकड़ने का ऐक्शन प्लान तैयार
तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, सितंबर 2017 में माया कोडनानी के बचाव पक्ष के गवाह के रूप में निचली अदालत में पेश हुए थे. बीजेपी की पूर्व मंत्री कोडनानी ने अदालत से अनुरोध किया था कि अमित शाह को यह साबित करने के लिए बुलाया जाए कि वह गुजरात विधानसभा में और बाद में अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल में मौजूद थीं, न कि नरोदा गाम में, जहां नरसंहार हुआ था. छह अलग-अलग न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की है.
बदलते रहे जज, चलती रही सुनवाई, अब आया फैसला
2010 में जब मुकदमा शुरू हुआ, तब एसएच वोरा पीठासीन न्यायाधीश थे. बाद में उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया. उनके बाद मामले को संभालने वाले विशेष न्यायाधीशों में ज्योत्सना याग्निक, केके भट्ट और पीबी देसाई शामिल थे. ये सभी मुकदमे के लंबित रहने के दौरान सेवानिवृत्त हो गए.
अधिवक्ता चेतन शाह ने कहा कि विशेष न्यायाधीश एमके दवे अगले न्यायाधीश थे लेकिन मुकदमे के समापन से पहले उनका तबादला कर दिया गया. नरोदा गाम में नरसंहार 2002 के उन नौ बड़े सांप्रदायिक दंगों के मामलों में से एक था, जिसकी जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त एसआईटी ने की थी और जिसकी सुनवाई विशेष अदालतों ने की थी. (इनपुट: भाषा)
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.