डीएनए हिंदी: आज लंबे समय से चल रहे हिजाब विवाद (Hijab Row) पर कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) का एक ऐतिहासिक फैसला आ गया है. इस फैसले में कोर्ट ने ना केवल छात्राओं की याचिकाओं को खारिज कर उन्हें झटका दिया है बल्कि संवैधानिक मूल्यों के मुद्दे पर अहम टिप्पणी करते हुए फैसले की व्याख्या भी की है. इसलिए इस फैसले के बिंदुओं को समझना चाहिए.
तीन महत्वपूर्ण प्रश्नों का मिला उत्तर
दरअसल, कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित और जस्टिस जेएम काजी की बेंच ने उडुपी की लड़कियों की याचिका से जुड़े तीन प्रश्नों पर स्पष्ट जवाब दिए हैं.
1- हिजाब नहीं है धर्म का अभिन्न हिस्सा: हिजाब को लगातार धार्मिक अस्मिता और आजादी से जोड़कर देखा जा रहा था और इसके अनुसार यह भी कहा जा रहा था कि छात्राओं को हिजाब की इजाजत मिलनी चाहिए. वहीं कहा कि हिजाब इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग नहीं है. यह अनिवार्य नहीं है इसलिए इसे स्वीकारा नहीं जा सकता है.
2- छात्र नहीं कर सकते विरोध: वहीं स्कूल के नियमों का विरोध करने को लेकर कोर्ट ने कहा है किस्कूल में यूनिफॉर्म पहनने के लिए बाध्य करना ठीक है, इसका छात्र विरोध नहीं कर सकते हैं. स्कूलों ने हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया था जिसके बाद छात्राएं विरोध कर रही थीं.
3- सरकार के पास है अधिकार: वहीं एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी था कि 5 फरवरी का बोम्मई सरकार का ऑर्डर (Uniform Dress Code) वैध है. जिसके बाद स्कूलों में हिजाब पर रोक लगी थी क्या वह सरकार ने मनमाने ढंग से जारी किया. वहीं इस वालो को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार की तरफ से Uniform Dress Code जारी करने वाला पांच फरवरी का फैसला रद्द नहीं किया जा रहा है.
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ऐसा कुछ तथ्य नहीं पेश कर पाए कि सरकार ने फैसला मनमाने ढंग से लागू किया और सरकार के पास ही यह अधिकार है कि वो ड्रेस कोड लागू करना या हटाने पर फैसला ले सकती है.
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सुप्रीम कोर्ट जाएगा मामला?
गौरतलब है कि इस फैसले को लेकर महबूबा मुफ्ती समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने दुख जताया है. वही याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने भी आगे सुप्रीम कोर्ट जाने का संकेत दिया है. ऐसे में अब यह मामला और बढ़ सकता है क्योंकि तब तक सरकार के पास इस मुद्दे पर फैसले लेने की क्षमता होगी.
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