डीएनए हिंदी: Assam News- असम जल्द ही बहुविवाह को गैरकानूनी ठहराने वाला राज्य बन जाएगा यानी वहां एक से ज्यादा शादी करना कानून की नजर में जुर्म होगा, जिसके लिए आपको सजा भी भुगतनी पड़ सकती है. बहुविवाह (Polygamy) को अवैध बनाने वाला कानून लाने की घोषणा करने के दो दिन बाद ही मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इसके लिए एक्सपर्ट कमेटी गठित कर दी है. हिमंत ने चार सदस्यीट कमेटी को गठित करने की जानकारी गुरुवार को सभी के साथ साझा की. उन्होंने कहा कि यह कमेटी 60 दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट देगी, जिसमें सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद यह सलाह होगी कि किस तरह कानून को पूरी तरह वैध बनाया जाए यानी उसे खारिज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सके. असम की भाजपा सरकार के इस कदम को समान नागरिक संहिता (UCC) की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है, जिसे लागू करने के लिए असम सरकार ने पहले ही कानूनी कवायद शुरू कर रखी है.
एक्सपर्ट कमेटी में शामिल हैं ये चार मेंबर
हिमंत बिस्वा सरमा ने एक ट्वीट में एक्सपर्ट कमेटी के गठन की जानकारी दी, जिसमें उन्होंने बताया कि कमेटी की चेयरपर्सन जस्टिस (रिटायर्ड) श्रीमती रूमी फुकान को बनाया गया है, जबकि मेंबर्स में असम के एडवोकेट जनरल देबाजीत सैकिया, एडिशनल एडवोकेट जनरल नलिन कोहली और एडवोकेट नैकीबुर जमान शामिल हैं.
दो दिन पहले बताया था सीएम ने क्या काम करेगी कमेटी
हिमंत बिस्वा सरमा ने दो दिन पहले यानी 9 मई को ट्वीट के जरिये इस कमेटी को बनाने की घोषणा की थी. उन्होंने ट्वीट में कहा था, राज्य विधानसभा को बहुविवाह पर रोक लगाने का अधिकार है या नहीं, इस बात की कानूनी जांच के लिए असम सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी गठित करने का निर्णय लिया है. कमेटी भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के साथ ही मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के प्रावधान भी जांचेगी. ये प्रावधान राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत हैं. कमेटी सही निर्णय लेने के लिए सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श करेगी. इसके बाद अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.
क्यों उठा रहे हैं हिमंत ऐसा कदम?
मुख्यमंत्री हिमंत ने मीडिया से बातचीत में पिछले दिनों बहुविवाह को स्पष्ट तौर पर महिला गरिमा के विपरीत बताया था. उन्होंने कहा था कि भारत में बहुविवाह केवल मुस्लिम समुदाय के अलावा अमूमन अन्य सभी धार्मिक समुदायों में प्रतिबंधित है. भारत बहुत सारे ऐसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों में हस्ताक्षरकर्ता है और नागरिक व राजनीतिक अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की समिति का भी हिस्सा है, जिनमें महिलाओं के खिलाफ हर भेदभाव खत्म करने को कहा गया है. बहुविवाह महिला गरिमा के विपरीत है. इसलिए यह प्रथा खत्म होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट भी करने जा रहा है बहुविवाह पर सुनवाई
असम सरकार का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की उस घोषणा के बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि वह एक संविधान पीठ गठित करेगा, जो मुस्लिम समाज में बहुविवाह और निकाह के बाद हलाला जैसी प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.
क्या होता है बहुविवाह
बहुविवाह में किसी भी पुरुष या महिला के एक से ज्यादा जीवनसाथी हो सकते हैं यानी आप एक से ज्यादा शादियां बिना पहले पति-पत्नी को तलाक दिए भी कर सकते हैं. भारत में मुस्लिम समुदाय को IPC की धारा 494 के तहत पहली पत्नी की सहमति से चार विवाह तक करने की इजाजत है. हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 यह इजाजत केवल मुस्लिम पुरुषों को ही देता है यानी मुस्लिम महिला को दूसरी शादी करने के लिए पहले पति से तलाक लेना होगा. इस लिहाज से यह नियम मुस्लिम समुदाय में भी महिला से भेदभाव वाला माना जाता है.
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